________________
२७८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वरा शब्द मूल : वरा फलत्रिके ब्राह्मी-पाठा-मेदा-ऽमृतासु च
विडङ्ग रेणुकागन्धे हरिद्रा - श्रेष्ठ्योरपि ॥१५८७।। वराङ्ग मस्तके यौनौ तथा गुह्ये गुडत्वचि ।
वराङ्गः कुञ्जरे विष्णौ सुन्दरांगे त्वसौ त्रिषु ॥१५८८।। हिन्दी टोका-वरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके नौ अर्थ होते हैं-१. फलत्रिक (त्रिफला) २. ब्राह्मी (सोमलता) ३. पाठा (ग्वार पाठा) ४. मेदा (मज्जा मांस) ५. अमृता (वचा) ६. विडङ्ग (वायविडङ्ग) ७. रेणुकागन्ध (हरेणुका नाम का वृक्ष विशेष) ८. हरिद्रा (हलदी) तथा ६ श्रेष्ठ (उत्तम)। नपुंसक वरांग शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. मस्तक, २. योनि (गर्भाशय) ३. गुह्य (रहस्य गोपनीय) और ४. गुडत्वच् (दालचीनी–काठी) और पुल्लिग वरांग शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. कुञ्जर (हाथी) और २. विष्णु (भगवान विष्णु ईश्वर) किन्तु ३. सुन्दरांग (सुन्दर-अंग शरीर) अर्थ में वरांग शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार वरा शब्द के नौ और वरांग शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझने चाहिए। मूल : वराटकः पद्मबीजे रज्जौ किञ्च कपदके ।
वर्णः कुथे ब्राह्मणादौ शुक्लादावक्षरे गुणे ॥१५८६।। भेदे गीतक्रमे चित्रे तालभेदांग - रागयोः ।
रूपे स्वर्णे व्रते कीतौं स्तवने च विलेपने ।।१५६०॥ हिन्दी टीका-वराटक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पद्म बीज (कमलगट्टा) २. रज्जु (डोरी) और ३. कपर्दक (कौड़ी)। वर्ण शब्द भी पुल्लिग है और उसके सोलह अर्थ माने गये हैं--१. कुथ (दर्भ-कुश या हाथी का आस्तरण झूला) २. ब्राह्मणादि (ब्राह्मण आदि क्षत्रिय-वैश्य और शूद्र वर्ण) ३. शुक्लादि (शुक्ल आदि-नील पीत हरित रक्त कपिश वगैरह वर्ण) ४. अक्षर (लिपि) ५. गुण, ६ भेद, ७. गीतक्रम (गान परिपाटी) ८. चित्र, ६. तालभेद (ताल विशेष) १०. अंगराग (शरीर का राग पाउडर) ११. रूप. १२. स्वर्ण (सोना) १३. व्रत, १४. कीर्ति, १५. स्तवन (स्तुति) और १६. विलेपन (चन्दन वगैरह का लेप करना) इस प्रकार वर्ण शब्द के सोलह अर्थ जानना।
वर्णकं लेपनद्रव्ये हरितालेऽपि चन्दने । वर्णनं दीपने वर्णीकृतौ विस्तरणे स्तुतौ ॥१५६१॥ वर्णमाला जातिमाला-ऽक्षरश्रेण्योः प्रकीर्तिता।
पुमान् वर्णी चित्रकरे लेखके ब्रह्मचारिणि ॥१५६२॥ हिन्दी टोका-वर्णक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. लेपनद्रव्य (पाउडर वगैरह) २. हरिताल (हरिताल नाम का औषध विशेष-दूवी वगैरह) और ३. चन्दन । वर्णन शब्द भी नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. दीपन (प्रकट करना) २. वर्णीकृति (वर्णयुक्त करना) ३. विस्तरण (पल्लवित-विस्तार करना) और ४. स्तुति (स्तुति प्रशंसा करना) । वर्णमाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. जातिमाला और २. अक्षर श्रेणी (अक्षर पंक्ति)। वर्णी शब्द नकारान्त
मूल :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org