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३३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-शश शब्द मूल : शशो मृगान्तरे लोध्र बोले चन्दिरलाञ्छने ।
पुंविशेषेऽथ कर्पू रे चन्द्रे शशधरः स्मृतः ॥१६०२॥ हिन्दी टीका-शश शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं१. मृगान्तर (मृग पशु विशेष-खरगोश) २. लोध्र (लोध नाम का वृक्ष विशेष) और ३. बोल (वोर-गन्ध रस) और ४. चन्दिरलाञ्छन (चन्द्रमा का कलंक रूप चिन्ह विशेष) को भी शश कहते हैं और ५. विशेष (पुरुष विशेष) को भी शश शब्द से व्यवहार किया जाता है। शशधर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. कर्पूर और २. चन्द्र। मूल : शशविन्दुः पुमाँश्चित्ररथपुढे त्रिविक्रमे ।
चन्दिरे घनसारे च शशाङ्क: समुदाहृतः ॥१६०३।। शशिकान्तं तु कुमुदे चन्द्रकान्तमणौ तु ना। मौक्तिके कुमुदे चन्द्रप्रभायुक्त शशिप्रभम् ॥१६०४॥ शशिलेखा वृत्तभेद - गुडूचीन्दुकलासु च ।
* महादेवे बुद्धभेदे शशिशेखर ईरितः ॥१६०५।। हिन्दी टोका---शश विन्दु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. चित्ररथपुत्र (चित्ररथ का पुत्र) और २ त्रिविक्रम (वामन भगवान)। शशाङ्क शब्द भी पुल्लिग माना जाता है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. चन्दिर (चन्द्रमा) और २. घनसार (कपर)। शशिकान्त शब्द १. कमद (भेंट नाम का फूल विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. चन्द्रकान्तमणि अर्थ में शशिकान्त शब्द पुल्लिग माना गया है । शशिप्रभ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मौक्तिक (मुक्तामणि) २. कुमुद (कैरव) और ३. चन्द्रप्रभायुक्त (चन्द्रमा की कान्ति से युक्त) को भी शशिप्रभ कहते हैं। शशिलेखा शब्द स्त्रीलिंग हैं और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वृत्तभेद (वृत्तविशेष शशिलेखा नाम का छन्द विशेष) और २. गुडूची (गिलोय) तथा ३. इन्दुकला (चन्द्रमा की कला) को भी शशिलेखा कहते हैं। शशिशेखर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. महादेव और २. बुद्धभेद (बुद्ध विशेष) को भी शशिशेखर कहते हैं । मूल : . शष्कुली स्त्री कर्णरन्ध्र यवागू-मत्स्यभेदयोः ।
शष्पः स्यात् प्रतिभाहानौ शष्पं बालतृणे स्मृतम् ।।१६०६।। शस्तं देहे शुभे शस्त स्त्रिषु शंयु-प्रशस्तयोः ।
शस्त्र प्रहरणे लोहे निस्त्रिशे तु पुमानसौ ॥१६०७॥ हिन्दी टोका-शष्कुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कर्णरन्ध्र (कान का बिल) २. यवागू (हलवा लापसी) और ३. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष)। पुल्लिग शष्प शब्द का अर्थ-१. प्रतिभा हानि (प्रतिभा रहित-निष्प्रभ) होता है और नपुंसक शष्प का अर्थ २. बाल तृण (हरा नया घास) होता है । नपुंसक शस्त शब्द का अर्थ-देह (शरीर) होता है और पुल्लिग शस्त शब्द का अर्थ-शुभ होता है तथा त्रिलिंग शस्त शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शंयु (कल्याण वाला) और २. प्रशस्त (विहित वगैरह)। नपंसक शस्त्र शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. प्रहरण (आयध त २. लोह, किन्तु निस्त्रिश (अस्त्र विशेष) अर्थ में शस्त्र शब्द पुल्लिग हो माना जाता है ।
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