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३३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - शिफा शब्द
हिन्दी टीका-शिफा शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. पद्मकन्द (कमल का कन्दमूल) २. हरिद्रा (हल्दी) ३. मांसिका (मांस बेचना) और ४. शतपुष्पा (सोंफ) । पुल्लिग शिरस् शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. पिप्पलीमूल (पीपरि का मूल) २. शय्या, ३. मस्तक और ४. शयु (अजगर सांप) किन्तु नपुंसक शिरस् शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. सेनान (सेना का अग्र भाग) २. शिखर (पर्वत की चोटी) ३. मूर्धा (मस्तक) तथा ४. प्रधान (मुख्य) । नपुंसक शिरस्क शब्द का अर्थ- १. शिरस्त्राण (टोप) होता है किन्तु २. शिरः सम्बन्धी अर्थ में शिरस्क शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार शिरस्क शब्द के दो अर्थ समझने चाहिए। मूल : शिरि र्ना विशिखे हिंस्र निस्त्रिशे शलभे मतः ।
शिलं स्याज्जीवनोपायभेद उञ्छे तु न स्त्रियाम् ॥१६५०॥ शिला मन:शिला-ग्राव-द्वाराधः स्थितदारुषु ।
कर्पू रे स्तम्भशीर्षेऽथ शिलाज गिरिजेऽयसि ॥१६५१॥ हिन्दी टीका-शिरि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विशिख (धनुष बाण) २. हिंस्र (घातक) ३. निस्त्रिश (खडग) और ४. शलभ (पतंग पक्षी वगैरह)। नपंसक शिल शब्द का अर्थ१. जीवनोपायभेद (जीवनोपाय विशेष) किन्तु २. उञ्छ (कण-कण बांधना, चुनना) अर्थ में शिल श पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है । शिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. मनःशिला (मनशिल शंख, मर्मरपत्थर) २. ग्राव (पत्थर) ३. द्वाराधःस्थितदारु (द्वार के नीचे के भाग की लकड़ी) ४. कपूर और ५. स्तम्भशीर्ष (खम्भे का ऊपरी भाग)। शिलाज शब्द का एक अर्थ होता है-१. गिरिजा अयस् (शिलाजीत पत्थर या लोहा) इस प्रकार शिलाज शब्द का एक ही अर्थ समझना चाहिए।
शिलासनं तु शैलेये पाषाणरचितासने । शिलीन्ध्र करका-रम्भा-कुसुम-त्रिपुटासु च ॥१६५२॥ शिलीन्ध्री मृत्तिका-गण्डूपद्योः शकुनिकान्तरे ।
शिलीमुखो जडीभूते विशिखे भ्रमरे मृधे ॥१९५३॥ हिन्दो टोका-शिलासन शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शैलेय (शिलाजीत) और २. पाषाणरचितासन (पत्थर का बनाया हुआ आसन विशेष-चबूतरा)। शिलीन्ध्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं–१ करका (ओला) २. रम्भा (केला) ३ कुसुम (फूल) और ४. त्रिपुटा (इलायची । स्त्रीलिंग शिलीन्ध्री शब्द के तीन अर्थ होते हैं -१. मृत्तिका (मट्टी) २. गण्डूपयो (केंचुए की छोटी जाति) और ३. शकुनिकान्तर (शकुनिका विशेष पक्षी) । शिलीमुख शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. जडोभूत (स्तब्ध क्षुब्ध) २. विशिख (बाण) ३. भ्रमर और ४. मृध (संग्राम) इस प्रकार शिलीमुख शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। मूल : शिवं शुभे सुखे नीरे सैन्धवे श्वेतटङ्कणे ।
शिवो महेश्वरे वेदे पारदे कीलकग्रहे ॥१६५४॥ वालुके कृष्णधुस्तूरे पुण्डरीकद्रुमे सुरे। मोक्षे योगान्तरे लिंगे गुग्गुलौ च प्रकीर्तितः ॥१६५५॥
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