Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 356
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शिखी शब्द | ३३७ शिन : शोभाञ्जने शाके पुमान् प्राज्ञ : प्रयुज्यते । काचपात्र तु शिघाणं नासिका-लोहयोर्मले ॥१६४३।। हिन्दी टीका-पुल्लिग शिखा शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं--१. पर्वत, २. पादप (वृक्ष) ३. दीप, ४. मेथिका (मेथी) ५. सितावर (सतावर नाम का औषध विशेष) और ६. अजोमद्रुम (अजलोम नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) किन्तु ७. शिखायुक्त अर्थ में शिखी शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) समझा जाता है। शिग्रु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शोभाजन (सुरमा) और २. शाक । शिघाण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. काचपात्र (मालो वगैरह) २. नासिकामल (श्लेष्म) और ३. लोहमल (किट्ट/जंग) को भी शिंघाण कहते हैं। शिजा शरासनज्यायां तथा ऽलंकरणध्वनौ । शिञ्जिनी नूपुरे चापगुणेऽपि भणिता बुधैः ॥१६४४॥ शितं वाच्यवदाख्यातं दुर्बले निशिते कृशे । शिति भूर्जद्रुमे पुंसि सारे कृष्णे सिते त्रिषु ॥१६४५॥ हिन्दी टीका-शिञा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शरासनज्या (प्रत्यंचा) २. अलंकरणध्वनि (नूपुर वगैरह का गुञ्जन)। शिञ्जिनी शब्द के भी दो अर्थ होते हैं—१. नूपुर और २. चापगुण (धनुष की डोरी)। शित शब्द विशेष्यनिघ्न है और उसके तीन अर्थ हैं-१. दुर्बल २ निशित (तीक्ष्ण) और ३. कृश (पतला)। पुल्लिग शिति शब्द का १. भूर्जद्रुम (भोजपत्र का वृक्ष) अर्थ होता है किन्तु त्रिलिंग शिति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सार २. कृष्ण (काला) और ३. सित (सफेद)। मूल : संयोगभेदे मान्थर्ये शिथिलं मन्दबन्धने । श्लथे वाच्यवदाख्यातं शिपिस्तु किरणेपि ना ॥१६४६॥ शिपिविष्टः शिवे विष्णौ खलतौ दुष्ट चर्मणि । शिफा वृक्षजटाकारमूले सरिति मातरि ॥१६४७।। हिन्दी टोका-नपुंसक शिथिल शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. संयोगभेद (संयोग विशेष) २. मान्थर्य (मन्थरता-शैथिल्य) और ३. मन्दबन्धन (ढीला बन्धन) किन्तु ४. श्लथ (ढीला) अर्थ में शिथिल शब्द वाच्यवद् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। शिपि शब्द-१. किरण अर्थ में भी पुल्लिग है। शिपिविष्ट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं -१. शिव, २. विष्णु, ३ खलति (वृद्ध) और ४. दुष्टचर्म (खराब चमड़ा)। शिफा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वृक्षजटाकारमूल (वृक्ष का जटा सरीखा मूल भाग) २. सरित् (नदो) और ३. माता। इस प्रकार शिफा शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : पद्मकन्दे हरिद्रायां मांसिका शतपुष्पयोः । शिरो ना पिप्पलीमूले शय्यायां मस्तके शयौ ॥१६४८॥ सेनाग्रे शिखरे मूनि प्रधाने च नपुंसकम् । शिरस्कं तु शिरस्त्राणे शिरः सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६४६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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