________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शलाका शब्द | ३२६ मूल: शलाका शारिकाऽऽलेख्य कूचिका-शल्लकीषु च।
छत्रादिकोष्ठी-मदनद्रु-शल्येषु शरेऽस्थिन च ॥१८६६॥ शलाटु ना मूलभेदे बिल्वेऽपक्वफले त्रिषु ।
शल्कं स्याद् वल्कले मत्स्य त्वचि खण्डेऽपि नद्वयोः ॥१८६७॥ हिन्दी टीका-शलाका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. शारिका (मैना) २. आलेख्य कूचिका (चित्र लिखने की कूची) और ३. शल्लकी (शाहुर-शाही) ४. छत्रादिकोष्ठी (सोआ-वनसोंफ या धनियां-धानावा गोवर छत्ता वगैरह की कोष्ठी) और ५. मदनद्र (धतूर का वृक्ष) तथा ६. शल्य (हाड़का काँटा) एवं ७. शर (बाण) और ८. अस्थि (हड्डी)। पुल्लिग शलाटु शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं मूलभेद (मूल विशेष) और २. बिल्व (बेल-बिल्वफल) किन्तु ३. अपक्व फल (कच्चा आम वगैरह का फल) अर्थ में शलाटु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। शल्क शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. वल्कल (छिलका छाल) २. मत्स्यत्वक् (मछली की त्वचा) और ३. खण्ड (टुकड़ा) भी शल्क शब्द का अर्थ है। मूल : शल्यं कीकस-दुर्वाक्य-बाणेषु किल्विष विषे ।
तोमरे दुःसहे वंशकम्बिकायां नपुंसकम् ॥१८६८॥ शल्यो ना शल्लकी-सीमा-शलाका-मदनद्रष ।
मत्स्यप्रभेदे मालूरद्रुमे पाण्डवमातुले ॥१८६६६।। हिन्दी टीका - नपुंसक शल्य शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं ---१. कीकस (हड्डी) २. दुर्वाक्य (कटुवचन) ३. बाण (शर) ४. किल्विष (पाप) ५. विष (जहर) ६. तोमर (अस्त्र विशेष) ७. दुसह (दुःखपूर्वक सहन करना) और ८. वंशकम्बिका (बांस की करची या बांस की कमची) और पुल्लिग शल्य शब्द के सात अर्थ माने गये हैं--१, शल्लकी (शाही-शाहुर) २. सीमा (हद) ३. शलाका (कंची वगैरह) और ४. मदनद्र (धतूर का वृक्ष) तथा ५. मत्स्यप्रभेद (मत्स्य विशेष) एव ६. मालूरद्र म (बेल का वृक्ष-बिल्व वृक्ष) और ७. पाण्डव मातुल (युधिष्ठिर वगैरह पाण्डव का मामा) को भी शल्य कहते हैं। मूल : कुन्तास्त्रे त्वस्त्रियां श्वाविन्मदनद्रवोश्यस्तु शल्यकः ।
शल्लकीगजभक्ष्यायां शल्यकेऽपि स्त्रियामसौ ॥१६००॥ शबं स्यात् सलिले क्लीवं कुणपे पुनपुंसकम् ।
शबरः सलिले म्लेच्छजातौ शास्त्रान्तरे करे ॥१६०१॥ हिन्दी टीका- १. कुन्तास्त्र (भाला) अर्थ में शल्य शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। शल्यक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं -१. श्वाविध (साही-साहुर) और २. मदनद्र (धतूर का वृक्ष)। शल्लकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. गज भक्ष्या (हाथी का खाद्य-शल्लको नाम का वृक्ष विशेष) और २. शल्यक (साही वगैरह) । शब शब्द १. सलिल (जल) अर्थ में नपुंसक है किन्त २. कुणप (मुर्दा) अर्थ में पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है। शवर शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. सलिल (पानी) २. म्लेच्छ जाति (भील किरात) ३ शास्त्रान्तर (शास्त्र विशेष-मीमांसा भाष्य) और ४. कर (हाथ) इस प्रकार शवर शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org