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३३४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शार्दूल शब्द शार्कक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शर्करापिण्ड (कंकड़ का समूह) और २. दुग्धफेन (दूध का फेन) को भी शार्कक कहते हैं । शार्कर शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. क्षीर फेन (दूध का फेन) और २. शर्करान्वितदेश (पत्थर के टुकड़ा कंकड़ से युक्त स्थान) को भी शार्कर कहते हैं । शार्दूल शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गय हैं-१. राक्षस, २. व्याघ्र, ३. शरभ (सबसे बड़ा पक्षी विशेष) और ४. विहगान्तर (पक्षी विशेष) इस प्रकार शार्दूल शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये। मूल : चित्रके पुरतः स्थोऽसौ मत: श्रेष्ठे ऽन्यलिंगभाक् ।
शालो मत्स्ये वृक्षमात्रे प्राकारे शस्यसम्बरे ॥१६२६॥ शालिवाहनराजे च नदभेदेऽप्यसौ मतः ।
पाञ्चालिकायां वेश्यायां कीर्तिता शालभञ्जिका ॥१६२७॥ हिन्दी टीका-शार्दूल शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं--१. चित्रक (चीता) और २. श्रेष्ठ (उत्तम) इनमें चीता अर्थ में शार्दूल शब्द पुल्लिग है और श्रेष्ठ अर्थ में विशेष्यनिघ्न माना जाता है। शाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. मत्स्य (मछली) और २. वृक्षमात्र (वृक्ष) ३. प्राकार (परकोटा, ढुंग, किला वगैरह) और ४. शस्यसम्बर (हरी फसल में पानी या हरी फसल को खाने वाला हरिण) और ५. शालिवाहन राजा (शालिवाहन नाम के प्रसिद्ध राजा को भी शाल कहते है। ) तथा ६. नदभेद (नद विशेष) को भी शाल कहते हैं। शालभञ्जिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. पाञ्चालिका (द्रौपदी) और २. वेश्या । के मूल : शाला गृहे स्कन्ध शाखा - गेहैकदेशयोः ।
शालाकी नापिते शैलधारकेऽस्त्रचिकित्सके ।।१६२८॥ आरोहणे हस्तिनखे शालारं पक्षिपञ्जरे ।
शालावृको मृगे कीशे मार्जारे जम्बुके शुनि ॥१६२६॥ हिन्दी टीका-शाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. गृह (घर) २. स्कन्ध शाखा (सबसे पहले फूटने निकलने वाली डाल) और ३. गेहैकदेश (घर का एक भाग)। शालाकी शब्द के भो तीन अर्थ माने जाते हैं-१ नापित (हज्जाम) २. शैलधारक (पर्वत धारक) और ३. अर चिकित्सक (अस्त्र द्वारा चिकित्सा करने वाला)। शालार शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. आरोहण (च २. हस्तिनख (हाथी का नख) और ३. पक्षिपञ्जर (पक्षी का पिंजरा)। शालावृक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. मृग, २. कोश (वानर) ३. मार्जार (बिल्ली) ४. जम्बुक (सियार गीदड़) और ५. श्वा (कुत्ता) को भी शालावृक कहते हैं। मूल : शालि र्ना गन्ध मार्जारे षष्टिका-कलमादिके ।
शालीनः कथिनोऽधृष्ट शाला सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६३०॥ हिन्दी टोका-शालि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धमार्जार और २. षष्टिका (साड़ी) तथा ३. कलमादि (कलम वगैरह धान विशेष)। पुल्लिग शालीन शब्द का अर्थ१. अधृष्ट (सलज्ज-डरपोक) किन्तु २. शाला सम्बन्धी अर्थ में शालीन शब्द त्रिलिंग है।
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