Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 347
________________ ३२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शरवाणि शब्द (हाथ का ऊपर भाग विशेष वगैरह) और ३. वानरान्तर (वानर विशेष) तथा ४. क्रमेलक (ऊंट) और ५. शलभ (पक्षी विशेष)। शरमल्ल शब्द का अर्थ पक्षी होता है। मूल : शरवाणिः पुमान् पद्म बाणाने चिरजीविनि । शालाजिरे शेटके च शरावोऽस्त्री प्रकीर्तितः ॥१८६०॥ शरीरजः स्मरे पुत्रे रोगे त्रिषु तु देहजे । शरीरावरणं चर्म - काय वेष्टनयोरपि ॥१८६१॥ हिन्दी टीका-शरवाणि शब्द पुमान् है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. पद्म (कमल) २. बाणाग्र (बाण का अग्र भाग नोक) और ३. चिरजीवी (अधिक दिनों तक जीवित रहने वाला)। शराब शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. शालाजिर (शाला का अजिर-प्रांगण) और २. शेटक (शेर)। शरीरज शब्द १. स्मर (कामदेव) और २ पुत्र अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ३. देहज रोग (शरीर में उत्पन्न होने वाले रोग विशेष) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। शरीरावरण शब्द भी नपुंसक है उसके दो अर्थ होते हैं-१. चर्म और २. कायवेष्ठन (शरीर का आच्छादन)। मूल : शरुर्ना कुलिशे क्रोधे विशिखाऽऽयुधयोरपि । * शर्करा स्त्री कर्परांशे शकल-व्याधि भेदयोः ॥१८६२॥ सितोपलायां पाषाण शर्करान्वितदेशयोः । शवः शिवे हृषीकेशे शर्वरं तमसि स्मरणे ।।१८६३॥ हिन्दी टीका - शरु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. कुलिश (वज्र) २. क्रोध, ३. विशिख (धनुष वाण) और ४. आयुध (तलवार)। शर्करा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. कर्परांश (पत्थर का छोटा टुकड़ा) २. शकल (खण्ड-भित्ति-दीवाल) और ३. व्याधिभेद (व्याधि विशेष) तथा ४ सितोपला (सफेद उपल-पत्थर का टुकड़ा) और ५. पाषाण (पत्थर) तथा शर्करान्वितदेश (कंकड़ों से युक्त स्थान)। शर्व शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं -- १. शिव और २. हृषीकेश (विष्णु) । शर्वर शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं—१. तमस् (अन्धकार) और २. स्मरण (याद करना) इस प्रकार शर्वर शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये। मूल : शर्वरी स्त्री हरिद्रायां नारी-सन्ध्या-निशासु च । शर्शरीक: खले हिंस्र वीतिहोत्रे तुरंगमे ॥१८६४॥ शलो ब्रह्मणि कुन्तास्त्रे क्षेत्रभेदे क्रमेलके । भृङ्गरीटेऽथ शलली शल्लकीलोम्नि शल्यके ॥१८६५॥ हिन्दी टोका-शर्वरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. हरिद्रा (हलदी) २. नारी, ३. सन्ध्या और ४ निशा (रात)। शर्शरीक शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. खल (दुष्ट) २. हिंस्र (घातक) ३. वीनिहोत्र (अग्नि) और ४. तुरंगम (घोड़ा)। शल शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं - १. ब्रह्म (परमेश्वर) २ कुन्तास्त्र (भाला) ३. क्षेत्रभेद (खेत विशेष) ४. क्रमेलक (ऊंट) और ५. भृङ्गरीट । शलली शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. शल्लकीलोम (शाही-शाहुर का लाम) और २. शल्यक (हड्डी)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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