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नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - वर्णी शब्द | २७३ पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. चित्रकर (चित्रकार - फोटोग्राफर, चित्र बनाने वाला) २. लेखक (लेख करने वाला) तथा ३. ब्रह्मचारी । इस प्रकार वर्णी शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । मूल : स्तुतियुक्ते च शुक्लादिवर्ण सम्बन्धिनि त्रिषु ।
वर्तनं तूलनालायां तर्कपीढे च जीवने ॥। १५६३।। वर्तरुको नदीभेदे काकनीडे जलाऽऽवटे । द्वारपाले वर्तनी तु स्यात् पदव्यां च पेषणे ॥ १५६४॥
हिन्दी टीका - पुल्लिंग वर्णी शब्द का एक और भी अर्थ होता है - १. स्तुतियुक्त (स्तुति करने वाला) किन्तु २. शुक्लादिवर्ण सम्बन्धी (शुक्ल नील पीत वगैरह वर्णयुक्त) अर्थ में वर्णी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । वर्तन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. तुलनाला (तूल- कपास की नाला-पीरपींज) २. तर्क पीठ और ३. जीवन । वर्तरुक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. नदी - भेद (नदी विशेष ) २. काकनीड (कौवे का घोंसला ) और ३. जलाssवट (पानी का गड्ढा ) | वर्तनी शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्वारपाल, २. पदवी (पदस्थान रास्ता वगैरह ) और ३. पेषण (पीसने का साधन ) ।
मूल :
वतिः स्त्रियां दीपदशा-लेखयो नयनाञ्जने । द्वीपे भेषज निर्माण गात्रानुलेपने । १५६५ ॥
तथा हिन्दी टीका - वर्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके
छह अर्थ माने जाते हैं - १. दीपदशा (दीप की वत्ती ) २. लेख, ३. नयनाञ्जन (आँख का आँजन ) ४. दीप, ५. भेषज निर्माण और ६. गात्रानुलेपन ( शरीर का अनुलेपन - पाउडर वगैरह ) ।
मूल :
वर्द्धनं छेदने वृद्धौ वर्द्धिष्णौ वर्द्धनास्त्रिषु । वर्द्धनी शोधनी- घट्योः सनालजलभाजने ॥। १५६६॥ वर्धमानो देशभेदे धनिनां भवनान्तरे । विष्णौ शरावेऽन्त्यजिने पशुभेदोरुवूकयो ॥ १५६७॥ वर्वरः पामरे मत्ते केश-देश विशेषयोः । चक्रले पञ्जिकायां च गन्धपत्रतरावपि ॥ १५६८ ॥
हिन्दी टीका - नपुंसक वर्द्धन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. छेदन (छेदन करना) २. वृद्धि ( बढ़ना) किन्तु ३. वर्द्धिष्णु (वृद्धि चाहने वाला बढ़ने की इच्छा करने वाला) अर्थ में वर्द्धन शब्द त्रिलिंग माना जाता है । स्त्रीलिंग वर्द्धनी शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं- - १. शोधनी (मार्जनी - झाड) और २. घटी (छोटा घड़ा) और ३. सनालजलभाजन (वधना ) । वर्द्धमान शब्द भी पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. देशभेद ( देश विशेष-वर्धमान नाम का विहार में एक प्रान्त है ) २. धनिनां भवनान्तर ( धनिकों का भवन विशेष - हर्म्य) ३ विष्णु ( भगवान विष्णु ) ४ शराव ( प्याला) : अन्त्यजिन (अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर स्वामी) ६. पशुभेद (पशु विशेष) और ७. उरुवूक (एरण्ड - अण्डी) । वर्वर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी सात अर्थ माने गये हैं - १. पामर (नीच अधम कायर) २. मत्त ( पागल )
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