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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विस्मापन शब्द | ३०३ हिन्दी टीका-विस्मापन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. कुहक (इन्द्रजाल विद्या) २. गन्धर्वनगर (बनावटी गन्धर्वो का नगर) तथा ३. स्मर (कामदेव) । विहग शब्द के छह अर्थ होते हैं-१ भास्कर (सूर्य) २. चन्द्र, ३. ग्रह, ४. इभ (हाथी), ५. पक्षी और ६. बाण । इस प्रकार विहग शब्द के छह अर्थ जानना । मूल : विहङ्गश्चन्दिरे सूर्ये मेघे वाणे पतत्रिणि ।
विहङ्गमा भारयष्टौ स्त्री खगे तु विहंगम ॥१७३८॥ उक्तं विहननं हिंसा-विघ्नयो स्तूलपिञ्जरे । विहस्तः पुंसि पण्डे स्यात् पण्डिते व्याकुले त्रिषु॥१७३६॥ विहारो भ्रमणे स्कन्धे विन्दुरेखकरक्षिणि ।
परिक्रमे वैजयन्ते च लीलायां सुगतालये ॥१७४०॥ हिन्दी टीका-विहङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं—१. चन्दिर (चन्द्रमा) २. सूय, ३ मेघ (बादल) ४. बाण (शर) ५. पतत्रो (पक्षी)। विहङ्गमा शब्द -१. भारयष्टि (पट) अर्थ में स्त्रीलिंग माना जाता है किन्तु २. खग (पक्षी) अर्थ में विहंगम शब्द पुल्लिग है । विहनन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं --१. हिंसा (वध) २ विघ्न (बाधा) और ३. तूलपिञ्जर (कपास-रुई का ढेर)। विहस्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. पण्ड (नपुंसक, हिजड़ा) और २. पण्डित (विद्वान्) किन्तु ३. व्याकुल (घबड़ाया हुआ) अर्थ में विहस्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। विहार शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. भ्रमण (परिभ्रमण करना) २. स्कन्ध (कन्धा) ३. विन्दुरेखकरक्षी (बिन्दु रेखा का रक्षक) ४. परिक्रम (प्रदक्षिणा करना) ५. वैजयन्त (पताका) ६. लीला और ७. सुगतालय (बौद्ध मन्दिर)। मूल : विहेठनं विबाधायां हिंसायां च विडम्बने ।
विक्षेपः प्रेरणे त्यागे पुमान् विक्षेपणेऽप्यसौ ॥१७४१।। वीको वायौ खगे चित्ते वीकाशो रहसि स्फुटे ।
वीङ्खा स्त्री शूकशिम्ब्यां स्यात् सन्धौ नृत्ये गतेभिदि ॥१७४२॥ हिन्दी टोका-विहेठन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं---१. विबाधा (विशेष बाधा) २. हिंसा और ३. विडम्बन (विडम्बना)। विक्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. प्रेरण (प्रेरणा करना) २. त्याग और ३. विक्षेपण (फेंकना)। वीक शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१ वायु (पवन) २. खग (पक्षी) और ३. चित्त (मन)। वीकाश शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. रहस् (एकान्त) और २. स्फुट (स्पष्ट व्यक्त)। वीङ्खा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. शूकशिम्बी (कबाँच-कबाछु. जिसको शरीर में लगा देने से अत्यन्त खुजली उठती है) २. सन्धि (मेल मिलाप जोड़) ३. नृत्य (नाच) तथा ४. गतेभिद् (गतिविशेष) को भी वीङ्खा कहते हैं। मूल : वीचिः स्त्रीपुंसयोः स्वल्पतरङ्ग किरणाल्पयोः ।
अवकाशे सुखे भंगे वीची वीचिरिमावपि ॥१७४३॥
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