________________
मूल :
३०६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वीरभद्र शब्द १०. ब्राह्मी (सोमलता) और ११ विदारी (कृष्ण भूमि कूष्माण्ड-काला कौहला)। वीरतरु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कोकिलाक्ष (ताल मखाना) २. नदीसर्ज (अर्जुन वृक्ष) और ३. वन्हि (अग्नि कोण का स्वामी)।
वीरभद्रो ऽश्वमेधाश्वे वीरश्रेष्ठे त्रिहिग्गणे । वीर्यं बले प्रभावे च शक्तौ चेतसि रेतसि ॥१७५६॥ दीप्तावतिशयोत्साहे वीक्ष्यं विस्मय-दृश्ययोः ।
वीक्ष्यो ना लासके वाहे दर्शनीये त्वसौ त्रिषु ॥१७५.७।। हिन्दी टीका-वीरभद्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अश्वमेधाश्व (अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा) २. वीरश्रेष्ठ (वीर शिरोमणि) तथा ३. त्रिदृग्गण (त्रिनयन भगवान शंकर का गण विशेष) को भी वीरभद्र कहते हैं। वीर्य शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. बल (सामर्थ्य) २. प्रभाव, ३. शक्ति, ४. चेतस् (चित्त) और ५. रेतस् (वीर्य)। नपुंसक वीक्ष्य शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. दीप्ति (तेज वगैरह) २. अतिशयोत्साह (अतिशय-उत्साह) ३. विस्मय (आश्चर्य) और ४. दृश्य (देखने योग्य) किन्त पल्लिग वीक्ष्य शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. लासक (लास्य करने वाला) २. वाह (सवारी वगैरह) किन्तु ३. दर्शनीय (देखने योग्य) अर्थ में वीक्ष्य शब्द त्रिलिंग माना गया है। मूल : वकः शृगाले सरलद्रवे काके वकद्रुमे ।
ईहामृगे ऽनेकधूपे क्षत्रियेऽपि पुमानसौ ॥१७५८।। अम्बष्ठायां वृका प्रोक्ता, पाठायां तु वकीमता।
वृजिनाश्चकुरे पुंसि कुटिले तु त्रिलिंगकः ॥१३५६।। हिन्दी टीका- वृक शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. शृगाल (गीदड़) २. सरलद्रव (सरल देवदारु का सुगन्धित चूर्ण द्रव विशेष) ३. काक (कौवा) ४. वकद्रुम (वक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) ५. ईहामृग (भेड़िया हुड़ाड़) ६. अनेकधूप (अनेक प्रकार का धूप) और ७. क्षत्रिय (राजपूत) । १. अम्बष्ठा (जूही फूल) अर्थ में वृका शब्द का प्रयोग होता है और २. पाठा (पाठा या पाढर) अर्थ में वृकी शब्द का प्रयोग होता है । १. चिकुर (केश) अर्थ में पुल्लिग वृजिन शब्द का प्रयोग होता है और २. कुटिल (टेढ़ा) अर्थ में त्रिलिंग वृजिन शब्द का प्रयोग होता है। मूल : कल्मषे कुटिले रक्तचर्मण्यपि नपुंसकम् ।
वृति: स्त्री वेष्टने गुप्तौ वरणे प्रार्थनान्तरे ॥१७६०॥ वृत्तं पद्ये चरित्रे च शास्त्रोक्ताचारपालने ।
वृत्तस्त्रिषु दृढेऽतीते मृतेऽधीते च वर्तुले ॥१७६१॥ हिन्दी टीका-नपुंसक वृजिन शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. कल्मष (पाप) २. कुटिल (टेढ़ा) और ३. रक्तचर्म (लाल चमड़ा) । वृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. वेष्टन (लपेटना) २. गुप्ति (रक्षण) ३. वरण (पसन्द करना) और ४. प्रार्थनान्तर (प्रार्थना विशेष) । नपुंसक वृत्त शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. पद्य (श्लोक) २. चरित्र, ३. शास्त्रोक्ताचारपालन (शस्त्र प्रतिपादित आचार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org