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३१० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-बृहन्नल शब्द
बहन्नलो गुडाकेशे महानड उदुम्बरे । वृक्षादनो मधुच्छत्रे कुठारे वृक्षभेदिनि ॥१७७६।। प्रियाले पिप्पलेऽसौ स्त्री विदारीकन्द-वन्दयोः ।
वेगो महाकालफले जवे रेतः प्रवाहयोः ।।१७८०॥ हिन्दी टोका-बृहन्नल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गुडाकेश (अर्जुन) २. महानड (पटेढ़-पटेर) । वृक्षादन शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. मधुच्छत्र (मधु का छाता-मधुमक्खी का छत्ता) २. कुठार (कुहलार) ३. वृक्षभेदि (वृक्ष विशेष को काटने वाला वसूला वगैरह) ४. प्रियाल (चिरौंजी, पियार) और ५. पिप्पल, किन्तु ६. विदारीकन्द (शालपर्णी का कन्द या कूष्माण्डक का कन्द) और ७. वन्दा (बांदा वन्दा) को भी वृक्षादनी कहते हैं। वेग शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. महाकालफल (महाकाल का फल) २. जव, ३. रेतः (वीर्य) और ४. प्रवाह ।
वेगी शशादने जंघाकरिके च त्रिलिंगकः । वेडा स्त्री नावि वेडं तु सान्द्रविच्छिन्नचन्दने ॥१७८१।। वेणिः स्त्रियां विरहिणी बद्धकेशे जलोच्चये ।
वेणी स्त्री देवताऽद्रौ प्रवाहे सरिदन्तरे ॥१७८२।। हिन्दी टीका-वेगी शब्द नकारान्त त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. शशादन (बाज पक्षी जिसको श्येन पक्षी) भी कहते हैं और २. जंघाकरिक (लेटर-डाक ढोने वाला) । बेड़ा शब्द-१. नावि (नौका) अर्थ में स्त्रीलिंग है किन्तु नपुंसक वेड शब्द का अर्थ–१. सान्द्रविच्छिन्नचन्दन (सघन खण्ड चन्दन) होता है । वेणि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विरहिणीबद्धकेश (विरहणी नायिका का बँधा हुआ केश) और २. जलोच्चय (अत्यधिक जल)। दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग वेणी शब्द के तोन अर्थ माने गये हैं-१. देवताडद्र (देवताड नाम का वक्ष विशेष) २. प्रवाह और ३. सरिदन्तर (सरिद विशेष त्रिवेणी नदी, जो कि प्रयाग में बहती है)। इस प्रकार वेणी शब्द के कुल पाँच अर्थ समझना । मूल : प्रवेण्यामथ वेणा वंशे वंश्यां नृपान्तरे ।
वेतनं जीवनोपाये रुप्य कर्मण्ययोरपि ॥१७८३॥ वेतालो मल्लभेदे स्यात् द्वास्थे शिवगणाधिपे ।
भूताधिष्ठितकुणपे वेत्रोऽसुर - सुदण्डयोः ॥१७८४॥ हिन्दी टोका-वेणी शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. प्रवेणी (जूड़ा)। वेणु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वंश (बांस) २. वशी (वांसुरी) और. ३. नृपान्तर (नृप विशेष वेण नाम का राजा)। वेतन शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. जीवनोपाय (जीवन का साधन) २. रूप्य (रूपारुपया) और ३. कर्मण्य (कर्मठ)। वैताल शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. मल्लभेद (मल्ल विशेष) २. द्वास्थ (द्वारपाल) ३. शिवगणाधिप (भगवान शंकर के प्रमथादिगण का राजा) और ४. भूताधिष्ठितकुणप (भूत वैताल से सेवित कुणप मुर्दा) । वेत्र शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. असुर (राक्षस) और २. सुदण्ड (वेत्रवृक्ष-बेंत का वृक्ष)।
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