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३०२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-विष्कम्भ शब्द
हिन्दी टीका-विष्कम्भ शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. प्रतिबन्ध (रोक) २. विस्तार ३. अर्गल (खील-बिलैया) और ४. वृक्ष, ५. योगिबन्धान्तर (योगो का आसन बन्ध विशेष) ६. योग (समाधि) तथा ७. रूपकाङ्गप्रभेद (रूपक-दृश्य काव्य नाटक वगैरह का एक भाग विशेष)। विष्टम्भ शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं.-१. प्रतिबन्ध (रोक) और २. आनाहरुज् (मल मूत्र निरोध, जिस रोग में मल और मूत्र बन्द हो जाता है उस रोग को आनाहरुज् कहते हैं) । विष्ट र शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं—१. दर्भमुष्टि (कुश की मुष्टि) २. पीठाद्यासन (पीढ़ी वगैरह आसन) और ३. शाखी (वृक्ष)। स्त्रीलिंग विष्टि शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वेतन (पगार) २. वृष्टि (वर्षा) ३. भद्रा (दुर्गा विशेष वगैरह) ४. आजू (बलात्कार-हठ से नरक में ढकेलना) तथा ५. कर्म (क्रिया) किन्तु ६. कर्मकर (कर्म करने वाला अर्थ में) विष्टि शब्द त्रिलिंग है और १. दूरस्थान अर्थ में विष्ठल शब्द का प्रयोग होता है। मूल :
विष्णु नारायणे वह्नौ शुद्धे मुन्यन्तरे वसौ। पद्मेऽन्तरिक्ष क्षीरोदे क्लीवं विष्णुपदे स्मृतम् ॥१७३३।। विसरः प्रसरे संघे विसर्गो मलनिर्गमे ।
विसर्जनीये कैवल्ये दाने त्याग-विसृष्ट्ययोः ।।१७३४॥ हिन्दी टीका-विष्णु शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१ नारायण (भगवान लक्ष्मीनारायण) २. वह्नि (अग्नि) ३. शुद्ध (पवित्र) ४. मुन्यन्तर (मुनि विशेष) ५. वसु (धन वसु वगैरह) ६. पदम (कमल) ७. अन्तरिक्ष (गगनतल) और ८. क्षीरोद (क्षीर सागर)। किन्तु ६. विष्णुपद (बैकुण्ठ धाम) अर्थ में विष्णु शब्द नपुंसक माना जाता है । विसर शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. प्रसर (शीघ्रगमन वगैरह) २. संघ (समूह)। विसर्ग शब्द भो पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. मलनिर्गम (मल त्याग-शौच) २. विसर्जनीय (दो बिन्दु ':') और ३. कैवल्य (मुक्ति वगैरह) ४. दान, ५. त्याग और ६. विसृष्ट (भेजा गया)।
विसर्जनं परित्यागे दाने सम्प्रेषणे मतम । विसृत्वरो विसरणे गतिभेदे त्रिलिंगभाक् ॥१७३५॥ विस्तरो वाकप्रपञ्चे विस्तारे प्रणये चये ।
विस्तारो विटपे स्तम्बे विस्तीर्णत्वेऽपि कीर्तितः॥१७३६।। हिन्दी टोका-विसर्जन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. परित्याग, २ दान और ३. संप्रेषण (भेजना) । विसृत्वर शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. विसरण (गतिशील) और २. गतिभेद (गति विशेष) । विस्तर शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वाक्प्रपञ्च (वाणी का विस्तार) २. विस्तार ३. प्रणय (प्रेम) और ४. चय (समूह) । विस्तार शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. विटप (डाल, शाखा) २. स्तम्ब (खूटा वगैरह) और ३. विस्तीर्णत्व (फैलाव)। मूल:
विस्मापनस्तु कुहके गन्धर्वनगरे स्मरे । विहगो भास्करे चन्द्र ग्रहेभे पक्षि-वाणयोः ॥१७३७॥'
मूल :
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