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२८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - बाण शब्द मूल : काण्डाद्यवयवे भद्रमुजे तद्वच्च केवले ।
वाणी स्त्री वाग्देवतायां वचने वपनेऽपि च ॥१६२२॥ हिन्दी टोका-बाण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. काण्डाद्यवयव (धनुष काण्ड का एक भाग–अंग) २. भद्रमुञ्ज तथा ३. केवल (मुञ्जवाला) । वाणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वाग्देवता (सरस्वती) २. वचन (वाक्य शब्द) और ३. वपन (बीज बोना या काटना) इस प्रकार वाणी शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : वातघ्नी शालपमेश्वगन्धयोः शिमृडीक्षुपे ।
वातपुत्रो महाधूर्ते भीमसेने हनूमति ॥१६२३॥ वातरायण उन्मत्ते निष्प्रयोजनपूरुषे ।
करपात्रे कूटकाण्ड - द्विट-क्रान्ति - सरलद्रुषु ॥१६२४॥ हिन्दी टोका-वातघ्नो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शालपर्णी (सरिवन) २. अश्वगन्धा (अश्वगन्धा नाम का लता वक्ष विशेष) और ३. शिमडीक्षण न (शिमृडी नाम की छोटो डाल मूल वाली लता विशेष)। वातपुत्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं१. महाधूर्त (महावञ्चक) २. भीमसेन (वायुपुत्र भीम) और ३. हनुमान । वातरायण शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१ उन्मत्त (पागल) २. निष्प्रयोजन पुरुष (प्रयोजनरहित पुरुष) ३. करपात्र (तपस्वी) ४. कूट (कूटनीति तथा पहाड़ की चोटी वगैरह) ५. काण्ड (धनुषकाण्ड वगैरह) ६. द्विट् (शत्र) ७ क्रान्ति (आक्रमण) और ८. सरलद्र (देवदारु वृक्ष वगैरह) को भी वातरायण कहते हैं ।
वातरूषस्तु वातूलोत्कोचयोरिन्द्रधन्वनि । वाताटः स्याद् वातमृगे सूर्याश्वे पन्नगेऽपि च ॥१६२५।। वातारिरेरण्डतरौ शतमूल्यां च शूरणे । भल्लातके पुत्रदायां भाग्यर्यां स्नुह्यां विडङ्गके ॥१६२६॥ शैफालिकायां यवान्यां जतुका - तैलभेदयोः ।
वातिः पुमान् वायु-सूर्य-चन्द्रेषु गमने स्त्रियाम् ।।१६२७।। हिन्दी टोका-वातरूष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. वातूल (वातव्याधिवाला) २. उत्कोच (घूस वगैरह) और ३. इन्द्रधन्वा (इन्द्रधनुष)। वाताट शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१ वातमृग (हरिण विशेष) २. सूर्याश्व (सूर्य का घोड़ा) और ३. पन्नग (सर्प) । वातारि शब्द भी पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. एरण्डतरु (अण्डी का वृक्षदीबेल का वृक्ष) २ शतमूली (शतावर) ३. शूरण (ओल) ४. भल्लातक (भाला) ५. पुत्रदात्री (पुत्र को देने वाली लता विशेष) ६. भार्गी (ब्रह्मनेटी-भारङ्गी) ७. स्नुही (सेहुण्ड) और ८. विडङ्गक (वायविडङ्गवायभृङ्ग) । वातारि शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं-१. शेफालिका (सिंहरहार का वृक्ष या फूल) २. यवानी (अजमानि, जमानि) ३. जतुका (चामचिरयि) और ४. तैलभेद (तैल विशेष)। पुल्लिग वाति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. वायु, २. सूर्य, ३, चन्द्र, किन्तु ४. गमन अर्थ में वाति शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है।
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