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२७६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–वण्ड शब्द मूल :
वण्डोऽनावृतमेढ़े ना त्रिषु हस्तादिवजिते ॥१५७५।। बतेत्यव्ययं खेद-सन्तोषयोः स्याद् दयायां तथाऽऽमन्त्रणे विस्मये च ।
वतः पुंसि मार्गेऽक्षिरोगे प्रयुक्तो वरैः सत्यवाग्देवनद्योः सुधीभिः ।।१५७६॥ हिन्दी टीका-दण्ड शब्द-१. अनावृतमेढ़ (दिगम्बर नग्न) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है और २. हस्तादिवजित (हाथ वगैरह से रहित) अर्थ में वण्ड शब्द त्रिलिंग माना गया है। बत यह अव्यय है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. खेद (दुःख) २. सन्तोष, ३. दया, ४. आमन्त्रण (बुलाना या निमन्त्रण) और ५. विस्मय (आश्चर्य)। वतू शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. मार्ग (रास्ता) २. अक्षिरोग (आँख का रोग विशेष) ३. सत्यवाक् (सत्य - यथार्थ वाणी) तथा ४. देवनदी (गगा) इस प्रकार वत् शब्द शब्द के पाँच और वतू शब्द के चार अर्थ जानना । मूल: स्याद्वत्सो गोशिशौ वर्षे पुत्रादौ वायलिंगकः ।
वधूः स्नुषायां शट्यां च पृक्कायां शारिवौषधौ ॥१५७७॥ वनं निवासे विपिने जले प्रस्रवणे गृहे ।
वनजो मुस्तके दन्ताबले च वन शूरणे ॥१५७८।। हिन्दी टोका-पुल्लिग वत्स शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. गो शिशु (गाय का बछड़ा) और २. वर्ष, किन्तु ३. पुत्रादि (पुत्र वगैरह) अर्थ में वत्स शब्द वाच्यलिंगक (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। वधु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं.-१. स्नुषा (पुत्रवधू) २. शटी (कचूर-आमा हल्दी) ३ पृक्का (शाक विशेष) तथा ४. शारिवौषधि (ग्वार गुलीसर नाम का औषधि-वनस्पति बिशेष)। वन शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. निवास (निवास स्थान) २. विपिन (जंगल) ३, जल (पानी) ४. प्रस्रवण (झरना) और ५. गृह (मकान)। वनज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मुस्तक (मोथा) २. दन्ताबल (हाथी) और ३. वनशूरण (जंगली शूरण या पानी का शूरण-ओल) इस प्रकार वनज शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल: वन्दनी याचने वट्यां जीवातौ प्रणतावपि ।
वपा स्यान्मेदसि च्छिद्रे वप्ता तु जनके कवौ ॥१५७६।। प्राकाराध:स्थले वप्रं पाटीर-क्षोणि-रेणुषु ।
तटेऽथ वप्रः प्राकारे जनके च प्रजापतौ ॥१५८०॥ हिन्दी टीका-वन्दनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं --१. याचन (मांगना) २. वटी (गुटिका) ३ जीवातु (जिलाने वाली दवा) और ४. प्रणति (प्रणाम)। वपा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं--१. मेदस् (मज्जा-मांस) और २. छिद्र (बिल-- सूराख)। किन्तु वप्ता शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. जनक (पिता) और २. कवि । वप्र शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. प्राकार-अधःस्थल (प्राकार किला परकोटे का नोचा भाग) २. पाटोर (चन्दन वृक्ष) ३. क्षोणि (पृथिवी) ४ रेणु (धूलि) अथवा पाटीर-क्षोणि-रेणुषु का अर्थ-चन्दन तथा पृथिवी का
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