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२६८ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित – लावण्य शब्द
अर्थ होते हैं - १. देशान्तर (देश विशेष, लाट नाम का देश ) २. जीर्णभूषणादि ( जीर्णभूषण वगैरह ) तथा ३. वासस् ( कपड़ा) । लालायित शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. लालाविशिष्ट (लाला - लाड़ से युक्त) और २. व्यासक्तियुक्त (विशेष आसक्तियुक्त, लालसा करने वाला) को भी लालायित शब्द से व्यवहार किया जाता है ।
मूल :
लवणत्वे सुन्दरत्वे लावण्यमपि कीर्तितम् । लासकं सट्टके लास्यकरे बर्हिणि लासकः ||१५२६।। लिगुर्मूर्खे भूप्रदेशे मृगे लिगु तु मानसे । लिंगं सामर्थ्येऽनुमाने प्रकृतौ शेफ - चिह्नयोः ॥। १५३०॥
हिन्दी टोका – लावण्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. लवणत्व (नमकपना) और २. सुन्दरत्व (सौन्दर्य) । नपुंसक लासक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सट्टक ( सट्टक नाम का रूपक विशेष, नाटक) और २. लास्यकर (हावभावपूर्वक नाचने वाला) किन्तु ३ बर्ही ( मयूर ) अर्थ में लासक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । लिगु शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. मूर्ख, २. भूप्रदेश और ३. मृग किन्तु ४. मानस अर्थ में नपुंसक लिगु शब्द का प्रयोग किया जाता है। लिंग शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. सामर्थ्य (शक्ति) २. अनुमान (अनुमिति का करण ) ३. प्रकृति (मूल प्रकृति ) ४. शेफ ( श्वान का मूत्रेन्द्रिय) तथा ५. चिन्ह । इस प्रकार लिंग शब्द के पाँच अर्थ समझना । शिवमूर्तिविशेषे च व्याप्ये पुंस्त्वादिलक्षणे ।
मूल :
त्रिषु लिप्तं लेपयुक्त भक्षिते मिलितेऽपि च ॥ १५३१॥
लीनस्त्रिषु लयप्राप्ते श्लिष्टे किञ्च तिरोहिते ।
लीला के विलासे च खेलयामपि कीर्तिता ।। १५३२ ।।
हिन्दी टीका - लिंग शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. शिवमूर्तिविशेष (भगवान शंकर की लिंगाकार मूर्ति) २. व्याप्य ( व्याप्ति विशिष्ट, जैसे 'पर्वतोवह्निमान् धूमात्' इस प्रकार के अनुमान में धूम व्याप्तियुक्त होने से व्याप्य लिंग कहलाता है) और ३. पुंस्त्वादिलक्षण ( पुरुष का पुंस्त्व चिन्ह मूत्रेन्द्रिय) भीलिंग कहते हैं । लिप्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१ लेपयुक्त (लेपन से युक्त) २. भक्षित ( खाया हुआ ) तथा ३ मिलित ( मिला हुआ ) । लीन शब्द भी त्रिलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. लयप्राप्त ( तल्लीन ) २. श्लिष्ट (आलिंगित ) तथा ३. तिरोहित ( छिप गया ) । लीला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. केलि, २. विलास और ३. खेला ( क्रीड़ा करना) ।
मूल :
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लोकनाथो जिने विष्णौ शिवे बुद्धे प्रजापतौ ।
राज्ञि लोकस्तु भुवने जने च परिकीर्तितः ॥ १५३३॥ लोकेशः स्याद् बुद्धभेदे तथा ब्रह्मणि पारदे ।
लोचकः कज्जले कर्णपूरे निर्बुद्धि - रम्भयोः || १५३४॥
हिन्दी टीका - लोकनाथ शब्द के छह अर्थ माने गये हैं- १. जिन (भगवान तीर्थङ्कर) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. शिव ( भगवान शंकर ) ४. बुद्ध (भगवान बुद्ध) ५. प्रजापति (ब्रह्मा) और ६. राजा ।
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