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२५= | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित
-यवास शब्द
हिन्दी टीका - यवास शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- दुरालभाजवासा २. खदिर ( कत्था ) और ३. कण्टकीक्षुप (कटीला छोटी डाल अथवा पत्र वाला वृक्ष विशेष) । यक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. शक्रगृह ( इन्द्र का घर ) २. श्रीद (लक्ष्मीदाता) ३. गुह्यक ( यक्षेश्वर ) और ४. धनरक्षक (धन का रक्षण करने वाला) । याज्ञिक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. दर्भभेद (दर्भ विशेष कुश) २. पलाश, ३. यज्ञकर्ता (यज्ञ करने वाला) । यात्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १ उपाय २. उत्सव, ३. प्राणन ( श्वास लेना) और ४. यापन ( बिताना) और ५. गति ( गमन करना) इस प्रकार यात्रा शब्द के पाँच अर्थ समझना ।
मूल :
त्रिषु याप्यो ऽधमे निन्द्ये यापनीये रुगन्तरे ।
संयमे हरे यामो याम्यो ऽगस्त्ये च चन्दने ॥। १४७० ॥
यावत् तावच्चाव्ययं स्यान्माने कात्र्त्स्न्येऽवधारणे । पक्षान्तरे प्रशंसायामवधौ निश्चये तथा ॥। १४७१ ॥
हिन्दी टीका --- याप्य शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अधम (नीच) २. निन्द्य ( निन्दनीय ) ३. यापनीय ( बिताने योग्य) और ४. रुगन्तर ( रुग् विशेष- रोग विशेष) । याम शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. संयम (नियम निष्ठापूर्वक रहना) और २ प्रहर (तीन घण्टा ) । याम्य शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. अगस्त्य (अगस्त्य ऋषि) और २. चन्दन । यावत् शब्द और तावत् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. मान (परिमाण) २. कार्त्स्य (सारा) और ३. अवधारण ( निश्चय करना) । यावत् तावत् शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं- १. पक्षान्तर ( दूसरा पक्ष ) २. प्रशंसा ( बड़ाई) ३. अवधि (सीमा) और ४. निश्चय ।
मूल :
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परिच्छेदे तु वत्वन्तारेतौ स्तो वायलिंगकौ ।
त्रिषु युक्तो न्याययुक्त मिलिते योगशालिनि ॥१४७२ ॥ युगं कृतादौ युगले रथाद्यङ्ग े त्वसौ पुमान् । गिरिभेदे रथादीनां युगकाष्ठे युगन्धरः ॥। १४७३।।
हिन्दी टीका - किन्तु १. परिच्छेद (प्रकरण वगरह) अर्थ में यावत् शब्द और तावत् शब्द वत्वन्त (वत् प्रत्ययान्त) वाच्यलिंगक ( विशेष्यनिघ्न) समझे जाते हैं । युक्त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. न्याययुक्त (न्यायोचित, योग्य न्याय्य ) २. मिलित ( मिला हुआ) और ३. योगशाली (योगी) । नपुंसक युग शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१ कृतादि (सत्ययुग, द्वापर, त्र ेता और कलियुग ) और २. युगल (मिले जुले दो) किन्तु ३. रथाद्यङ्ग ( रथ वगैरह का युग पालो ) अर्थ में युग शब्द पुल्लिंग माना जाता है । युगन्धर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. गिरिभेद (गिरि विशेष - पर्वत विशेष - युगन्धर नाम का पहाड़) और २. रथादीनां युगकाष्ठ ( रथ- गाड़ी वगैरह का युगकाष्ठ पालो) ।
मूल :
युतकं
यौतुके मैत्रीकरणे चलनाके । संशये संश्रये युक्त नारी वस्त्राञ्चले युगे ।। १४७४ ||
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