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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - राजपुत्री शब्द | २६३
रेखा - केदारयोः पंक्तौ राजिका कृष्णसर्षपे । राज्ञी राजप्रिया -सूर्यपत्न्यो र्नील्यां च कांस्यके ॥ १४६६ ॥
राढा सूक्ष्मे पुरीभेदे शोभायामपि कीर्तिता । विष्णुक्रान्ताऽऽमलक्योः स्याद् राधा धानुष्कचित्रके ।। १५००।
हिन्दी टीका- राजपुत्री शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. मालती (मालती नाम का पुष्प विशेष, मोंगरा ) २. रेणुका (परशुराम की माता) ३. राजरीति ( राजा की रीति-रिवाज ) और ४. छुच्छुन्दरी (छुछुन्दर) को भी राजपुत्री कहते हैं। राजन शब्द नकारान्त पुल्लिंग है और उसके छह अथ माने जाते हैं - १. इन्द्र (देवराट् ) २. चन्द्र (चन्द्रमा) ३. प्रभु (मालिक) ४. पक्ष, ५. क्षत्रिय तथा ६. भूभृत (भूपति राजा) । राजिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. रेखा ( लकीर ) २. केदार (खेत की क्यारी) ३. पंक्ति (कतार ) और ४ कृष्णसर्षप (काली राई) । राज्ञी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. राजप्रिया ( राजा की प्रेयसी ) २. सूर्यपत्नी ( सूर्य की धर्मपत्नी ) ३. नीली (गड़ी) और ४. कांस्यक ( कांसा) । राढा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सूक्ष्म राधा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. विष्णुक्रान्ता (अपराजिता ) २. आमलकी (धात्री -आँवला) और ३. धानुष्कचित्रक (धनुषधारी का चित्र - फोटो ) ।
( पतला, जीणा ) २. पुरीभेद ( पुरीविशेष) और ३. शोभा
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मूल :
गोपीविशेषे नक्षत्रभेदे विद्युति हंसने । तमालपत्रे वास्तूके कुष्ठे रामं नपुंसकम् ॥। १५०१। सितेऽसिते मनोज्ञ े च त्रिषु रामः पुमान् हये ।
भार्गवे पशुभेदे च राघवे हलि- पाशिनोः ॥ १५०२ ॥
हिन्दी टीका --राधा शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं - १. गोपीविशेष ( राधा नाम की कृष्ण भगवान की प्रेयसी) २ नक्षत्रभेद (नक्षत्र विशेष - अनुराधा नक्षत्र) ३. विद्युत (बिजली) तथा ४. हिंसन ( मारना) । नपुंसक राम शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. तमालपत्र, २. वास्तूक (वथुआ साक) और ३. कुष्ठ (कुठ नाम का औषधि विशेष ) । त्रिलिंग राम शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. सित (सफेद) २. असित (काला) तथा ३. मनोज्ञ (सुन्दर) किन्तु ४. हय (घोड़ा) अर्थ में राम शब्द पुल्लिंग माना जाता है एवं ५. भार्गव (परशुराम ) ६. पशुभेद ( पशु विशेष) ७. राघव (रामचन्द्र ) तथा ८ हाभी ( बलराम ) ६. पाशी (वरुण) अर्थों में भी राम शब्द पुल्लिंग माना जाता है ।
मूल :
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रासः कोलाहल-ध्वान-क्रीड़ा - भाषासु शृङ्खले । परिहासे रसावासे रासे रासे रसः पुमान् ॥१५०३॥ षष्ठी जागरके गोष्ठ्यां शृङ्गारोत्सवयोरपि । रससिद्धौ चाथ राहुस्त्याग - ग्रहविशेषयोः ॥ १५०४ ॥
हिन्दी टीका - रास शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं - १. कोलाहल ( शोरगुल) २. ध्वान (आवाज) ३. क्रीड़ा, ४. भाषा (शब्द) ५. शृङ्खल (जञ्जीर) ६. परिहास (हँसी मखौल)
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