________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित नहुष शब्द | १८१ चूर्णादि (नोसि-छींकनी) और २. भेषजान्तर (औषधि विशेष) तथा ३. नासिकाहित (नाक के लिये हितकारक) और ४. नासा सम्बन्धि रज्जु (नाथ) इस तरह नस्य शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये।
नहुषो नागभेदे स्याच्चन्द्रवंश्यनृपान्तरे।। नक्षत्र मोक्तिके तारा-दाक्षायण्योश्च कीर्तितम् ॥१००६॥ नक्षत्रनेमिविष्णो स्याद् रेवत्यां ध्र व-चन्द्रयोः ।
नाक: स्वर्गेऽन्तरिक्षे च नाकुर्वल्मीक-शैलयोः ॥१००७॥ हिन्दी टीका-नहुष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. नागभेद (सर्प विशेष अजगर साँप) और २. चन्द्रवंश्यनृपान्तर (चन्द्रवंशी राजा विशेष) । नक्षत्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मौक्तिक (मोती) २. तारा और ३ दाक्षायणी (दुर्गा) । नक्षत्रनेमि शब्द भी पुल्लिग है-और उसके चार अर्थ होते हैं -१. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. रेवती (रेवती नाम का नक्षत्र विशेष) और ३.ध्र व (ध्र वतारा) तथा ४. चन्द्र । नाक शब्द पल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. स्वर्ग, और २. अन्तरिक्ष क्षितिज आकाश का अन्तस्तल) । नाकु शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. वल्मीक (दीमक, देवार) और २. शैल (पर्वत)। मूल : नाकुली कुक्कुटीकन्दे चविका-यवतिक्तयोः ।
क्षुद्रवार्ताकिनी-रास्ना-कन्दभेदेष्वपि स्त्रियाम् ॥१००८।। नागः पन्नग-पुन्नाग - क्र राचारिषु कुञ्जरे ।
सीसके मुस्तके वंगे वारिदे नागदन्तके ॥१००६।। हिन्दी टीका-नाकुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं ---१ कुक्कुटीकन्द (कन्ट विशेष) २. चविका (चाभ नाम का वृक्ष विशेष) ३. यवतिक्त और ४. क्षद्रवार्ताकिनी (छोटा रिंगनाबैंगन) ५. रास्ना (तुलसी पत्र) और ६. कन्दभेद (कन्द विशेष) । नाग शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं-१. पन्नग (सर्प) २. पुन्नाग (नागकेशर का वृक्ष) ३. क्रूराचारी (क्रूर आचरण करने वालादुष्ट पुरुष) ४. कुञ्जर (हाथी) ५. सीसक (सोसा) ६. मुस्तक (मोथा) ७. वङ्ग (रांग, कलई) ८. वारिद (मेघ) तथा ६. नागदन्त (खूरी)। इस प्रकार नाग शब्द के नौ अर्थ जानने चाहिए । मूल : देहानिल प्रभेदे च ताम्बूल्यां नागकेशरे ।
नागजं त्रिषु नागोत्थे क्लीवं सिन्दूर-रंगयोः ॥१०१०॥ हिन्दी टीका-नाग शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. देहानिलप्रभेद (शरीर के अन्दर रहने वाला नाग नाम का वायु विशेष) २. ताम्बूली (पान) और ३. नागकेशर (केशर)। नागज शब्द१. नागोत्थ (नाग-सर्प या हाथी से उत्पन्न) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। किन्तु २. सिन्दूर और ३ रंग (रांगा) अर्थ में नपुंसक माना जाता है। मूल : नागदन्तो हस्तिदन्ते भित्तिसंलग्नदारुणि ।
नागदन्ती तु वारस्त्री-श्रीहस्तिन्योः प्रकीर्तिता ॥१०११॥ नागपुष्पस्तु पुंनागे चम्पके नागकेशरे । हस्तितुल्यबले भीमसेने नागबलो मतः ॥१०१२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org