________________
१९२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निर्दर शब्द तुरग (सूर्य का घोड़ा) २. झर (झरना) और ३. तुषानल (बुस्सा का अग्नि)। निर्दट शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. दयाशून्य (निर्दय) २. निष्प्रयोजन (प्रयोजनरहित) ३. तीव्र (अत्यन्त घोर) ४. परापवाद निरत (दूसरों के अपवाद-मिथ्यारोप कलंक निन्दा वगैरह में निरत-तत्पर) और ५. मत (बुद्धि भी निर्दट कहते हैं। इस प्रकार निर्दट शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : निर्दर कठिने सारे निर्भये विगतत्रपे।
निर्देशः कथनोपान्तशासनेषु पुमान् मतः ॥१०७०॥ हिन्दी टोका-निर्दर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. कठिन (कठोर) २. सार (तत्व भाग) ३. निर्भय (भयरहित) और ४. विगतत्रप (त्रपा-लज्जारहित)। निर्देश शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कथन, २. उपान्त (निकट-समीप) और ३. शासन (शासन करना) इस प्रकार निर्देश शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल: निध तं खण्डिते त्यक्त कम्पिते च प्रकीर्तितम् ।
निर्बन्धीऽभिनिवेशे स्यात् शिशूनामाग्रहान्तरे ॥१०७१।। निर्मलं स्यात्तु निर्माल्येऽभ्रके त्रिषु मलोज्झिते ।
निर्माणं निर्मितौ सारे कर्मभेदे समञ्जसे ॥१०७२।। हिन्दी टीका-निर्धूत शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. खण्डित (टुकड़ा किया हुआ) २. त्यक्त (परित्यक्त परित्याग किया हुआ) और ३. कम्पित । निर्बन्ध शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं १. अभिनिवेश (अभिमान) और २. शिशूनाम् आग्रहान्तर (बच्चों का दुराग्रह, हठ)। निर्मल शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्माल्य (निर्माल) २. अभ्रक (अबरख) और ३. मलोज्झित (मलरहित)। निर्माण शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. निर्मिति (रचना) २. सार (तत्त्व) ३. कर्मभेद (क्रिया विशेष) और ४. समजस (उचित-योग्य) इस तरह निर्माण शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : निर्मितं कृतनिर्माणे गठिते रचिते त्रिषु ।
निर्मुक्तस्त्यक्तसंयोगे त्यक्तनिर्मोकपन्नगे ॥१०७३।। त्रिषुस्यात्त्यक्त संयोगे निर्मुटं तु कचङ्गने ।
निर्मुट: खर्परे सूर्येऽपुष्पवृक्षेऽपि कीर्तितः ॥१०७४॥ हिन्दी टोका-निर्मित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. कृतनिर्माण (निर्माण किया गया) २. गठित (संगठित) और ३. रचित (रचा गया)। निर्मुक्त शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. त्यक्तसंयोग (निष्परिग्रह-परिग्रह-परिवार वगैरह सांसारिक झंझट रहित) २. त्यक्तनिर्मोकपन्नग (केञ्चुल रहित सर्प) और ३. कचङ्गन (कर—टैक्सशून्य हट्ट-हाट) इनमें त्यक्तसंयोग अर्थ में निमुक्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है और कचङ्गन अर्थ में निर्मुट शब्द नपुंसक माना जाता है किन्तु १. खर्पर (खप्पर) २. सूर्य और ३. अपुष्पवृक्ष (फूलरहित वृक्ष) अर्थों में निर्मुक्त शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। मूल : निर्मोको व्योम्नि सन्नाहे मोचने सर्पकञ्चुके ।
निर्याणं कुञ्जराऽपाङ्गभागे मोक्षेऽध्वनिर्गमे ।।१०७५।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org