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नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित पयस्विनी शब्द | २११
३. मृणाल (कमल नाल तन्तु) ४. सरोवर (तालाब) ५. स्त्रीविशेष (पद्मिनी चित्रणी हस्तिनी और शंखिनी - इस चार प्रकार की स्त्रियों में पद्मिनी नाम की स्त्री विशेष ) ६. पद्मयुक्तप्रदेश (कमलयुक्त स्थान) तथा ७. पद्मसमूह ( कमल समूह) को भी पद्मिनी कहते हैं । पन्नग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- - १. भुजग (सर्प) २. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष) और ३. भेषजभेद ( औषध विशेष ) । पपी शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. चन्दिर (चन्द्रमा) और २. सूर्य । पयस् शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. सलिल (जल - पानी) और २ दुग्ध (दूध) । इस प्रकार पयः शब्द के दो अर्थ जानना ।
मूल :
पयस्विनी नदी - क्षीरविदारी धेनु - रात्रिषु । जीवन्ती-क्षीर काकोली - दुग्ध फेनीषु कीर्तिता ॥११८५ ॥ पयोधरः स्तने मेघे नारिकेले कशेरुणि ।
परं स्यात्केवले मोक्षे परो ब्रह्मायु वैरिणोः ||११८६।।
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हिन्दी टीका - पयस्विनी शब्द के सात अर्थ माने गये हैं- १. नदी, २. क्षीरविदारी ( शुक्ल भूमि कूष्माण्ड- सफेद कोहला – कुम्हर) ३. धेनु (दुधारु गाय ) ४. रात्रि (रात) ५. जीवन्ती (दोरो - जीवन्ती नाम की प्रसिद्ध औषधि विशेष ) ६. क्षीरकाकोली (लता विशेष अथवा औषध विशेष) और ७. . दुग्ध (दूध का फेन) । पयोधर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. स्तन, २ मेघ, ३. नारिकेल और ४. कशेरू (केशौर) । नपुंसक पर शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं- १. केवल ( अकेला ) और २. मोक्ष । पुल्लिंग पर शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. ब्रह्मायु (ब्रह्मा की आयु — कोटियुग सहस्र ) और २. वैरी (शत्रु) को भी पर कहते हैं ।
मूल :
परस्त्रिषूत्तरे
श्रेष्ठे
शत्रावितरदूतयोः । परञ्ज स्तैलयन्त्रे स्यात् क्षुरिकाफल - फेनयोः ।। ११८७ ॥ परभागो गुणोत्कर्षे शेषांशे च सुसम्पदि ।
आद्ये प्रधान उत्कृष्टेऽग्रसरे परमस्त्रिषु ।। ११८८ ।।
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हिन्दी टीका - त्रिलिंग पर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. उत्तर (उत्तरकाल या उत्तरदेश) २. श्रेष्ठ (महान्) ३. शत्रु ४. इतर ( अन्य दूसरा ) तथा ५, दूत ( सन्देशहारक) । परञ्ज शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. तैलयन्त्र (कल- कोल्हू तैल निष्कासक यन्त्र विशेष ) २. क्षुरिकाफल ( फल विशेष ) तथा ३. फेन । परभाग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. गुणोत्कर्ष ( प्रशंसनीय गुण ) २. शेषांश (बचा हुआ भाग) और ३. सुसम्पद् (सुन्दर सम्पत्ति ) । परम शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. आद्य (पहला) २. प्रधान (मुख्य) ३. उत्कृष्ट (बढ़िया) और ४. अग्रेसर ( मुखिया नेता) । इस प्रकार परम शब्द के चार अर्थ जानना ।
मूल :
नारायणे शिवे तीर्थंकरे च परमेश्वरः । परमेष्ठी जिने ब्रह्म - शालग्रामविशेषयोः ॥ ११८६ ॥ परम्पर: प्रपौत्रादौ प्रपोत्रतनये मृगे । परम्परा स्त्री सन्ताने परिपाट्यां वधेऽपि च ।।११६०॥
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