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२४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मंगला शब्द
हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग मंगला शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पार्वती (दुर्गा) २. शुक्ल. दूवी (सफेद दूभी) और ३. साध्वी। और नपुंसक मंगल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. मंगल (शुभ) और २. कुशल किन्तु पुल्लिग मंगल शब्द का अर्थ ३. अंगारक (कुज-मंगलग्रह) होता है। मंगल्य शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. चन्दन, २. दधि, ३. स्वर्ण (सोना) और ४. सिन्दूर (कुंकुम)। मज्जा शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. अस्थिसार (हड्डी का सार भाग) और २. वृक्षादेः उत्तमस्थिर भाग (वृक्ष आदि का सारिल भाग)। मूल : कर्णवंशे च खट्वायां मञ्च: स्यादुच्चमण्डपे ।
मञ्जरी तुलसी-मुक्ता-लता-वल्लरीषु स्मृता ।।१३६८॥ मठश्छात्रादिनिलये देवतायतनेऽपि सः।
मणिः स्त्री पुंसयोरश्मजातौ मुक्तादिकेऽपि च ॥१३६६।। हिन्दी टीका-मञ्च शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. कर्णवंश, २. खट्वा (चारपाई) तथा ३. उच्चमण्डप (मचान)। मञ्जरी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. तुलसी, २. मुक्ता (मोती) ३. लता और ४. वल्लरी (वेल)। मठ शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. छात्रादिनिलय
छात्रावास) और २. देवतायतन (मन्दिर)। मणि शब्द पूल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. अश्म जाति (शंखमर्मर पत्थर विशेष) और २. मुक्तादिक (मोती वगैरह) । मूल :
विद्रुमेऽलिजरे नागविशेष - मणिबन्धयोः । मणिमाला स्त्रियां लक्ष्म्यां दीप्तौ हारे रदक्षते ।।१४००॥ मण्डो मस्तुनि भूषायामेरण्डे सार-पिच्छ्योः ।
शाकभेदे भक्तरसे दर्दुरेऽपि पुमान् स्मृतः ॥१४०१।। हिन्दी टीका-मणि शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-५. विद्रम (मंगा चनोटी) २. अलिजर ३. नाग विशेष और ४. मणिबन्ध (पहुँचा)। मणिमाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. लक्ष्मी, २. दीप्ति (प्रकाश) ३. हार (कण्ठी) और ४. रदक्षत (दन्त क्षत)। मण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. मस्तु (मण्ड-मांड) २. भूषा (जेबर) ३. एरण्ड (अण्डी) ४. सार (तत्वसार भाग) ५. पिच्छ, ६. शाकभेद (शाक विशेष) ७. भक्तरस (भात का सार भाग) और ८. दर्दुर (मेंढ़क, एड़का)।
देवादिदत्तभवने मण्डपोऽस्त्री जनाश्रये । मण्डलं परिधौ चक्रवाले द्वादशराजके ॥१४०२॥ कोठरोगे जनपदे गोले बिम्बे त्वसौ त्रिषु ।
अथ मण्डलकं बिम्बे कुष्ठभेदे च दर्पणे ॥१४०३।। हिन्दी टोका-मण्डप शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं—१. देवा. दिदत्तभवन (देवादि के लिए दिये हुए भवन–मन्दिराकार मण्डप विशेष) और २. जनाश्रय (जन का आश्रय-निवास स्थान विशेष) । मण्डल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. परिधि
मूल :
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