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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मण्डली शब्द | २४७ (परिवेष नाम का सूर्य के चारों तरफ वाला घेरा और गोलाई) २. चक्रवाल (लोकालोक नाम का पर्वत, जोकि सप्तद्वीप वाली पृथिवी को घेरे हुए हैं) तथा ३. द्वादशराजक (बारह राजाओं का समूह) । किन्तु त्रिलिंग मण्डल शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कोठरोग (गजकर्ण रोग जिससे शरीर में गोले गोले चकते पड़ जायँ उस रोग को कोठरोग कहते हैं) २. जनपद (देश) ३. गोल और ४. बिम्ब। मण्डलक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. बिम्ब, २. कुष्ठभेद (कुष्ठरोग विशेष-सफेद कुष्ठ) और ३. दर्पण (आइना)।
मण्डली जाहके सर्प मार्जारे क्टपादपे। मण्डूकः शोणके भेके मुनि-बन्धविशेषयोः ॥१४०४॥ मण्डूकी भेकभार्यायां ब्राह्मी-धृष्टास्त्रियोरपि ।
मतिर्बुद्धौ शाकभेदे स्पृहायां स्मरणे स्त्रियाम् ॥१४०५॥ हिन्दी टीका नकारान्त मण्डली शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. जाहक (खट्वाश) २. सर्प, ३. मार्जार (बिल्ली) और ४. वटपादप (वटवृक्ष) । मण्डूक शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. शोणक (सोनापाठा) २. भेक (मण्डूक-एड़का) ३. मुनि (मुनि विशेष-मण्डूक नाम के प्रसिद्ध ऋषि विशेष, जिन्होंने मण्डूक कारिका लिखी है) और ४. बन्धविशेष (आसन विशेष जो कि मण्डूकासन कहलाता है)। मण्डूकी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. भेकभार्या (मण्डूक-एड़का की स्त्री) २. ब्राह्मी (भारती-सरस्वती वगैरह) और ३. धृष्टस्त्री (धीठ औरत)। मति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. बुद्धि, २. शाकभेद (शाक विशेष) ३. स्पृहा (वाञ्छा-अभिलाषा) और ४. स्मरण (याद करना) इस प्रकार मति शब्द के चार अर्थ मानना। मूल : मत्तो लुलाये धुस्तूरे क्षरन्मदमतङ्गजे ।
कोकिले च पुमान् क्षीब-मत्तयोस्तु त्रिषु स्मृतः ॥१४०६॥ प्रांगणावरणे पूगचूर्णे स्यान्मत्तवारणम् ।
मत्स्यो नारायणे मीने राशौदेश-पुराणयोः ॥१४०७॥ हिन्दी टोका-मत्त शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. लुलाय (लुलापमहिष) २. धुस्तूर (धत्तूर) ३. क्षरन्मदमतंगज (मत्तवाला हाथी) तथा ४. कोकिल (कोयल) किन्तु ५. क्षीब (उन्मत्त) और ६. मत्त अर्थ में मत्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मत्तवारण शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं--१. प्रांगणावरण (अँगना का घेरावा) और २. पूगचूर्ण (सुपारी का चूर्ण विशेष)। मत्स्य शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. नारायण (भगवान विष्णु) २. मीन (मछली) ३. राशि (मीन राशि) और ४. देश (मत्स्य नाम का देश विशेष) तथा ५. पुराण (मत्स्य नाम का पुराण विशेष) इस प्रकार मत्स्य शब्द के पाँच अर्थ समझने चाहिए। मूल : मदो रेतसि कस्तयाँ हस्तिगण्डजले नदे।
मद्येऽभिमाने कल्याणवस्तु - मत्ततयोरपि ॥१४०८॥ मदनः सिक्यके कामे वसन्ते पिचुकद्रुमे । धुस्तूरे खदिरे माषे श्वसने बकुलद्रुमे ॥१४०६॥
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