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२३८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-बोधन शब्द
हिन्दी टोका-वोधन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. विज्ञापन (विज्ञप्ति करना) २. वेदन (ज्ञान करना या ज्ञान कराना) ३. गन्धदोपन (सुगन्ध को उद्दीपित करना)। ब्रघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. सूर्य, २. शिव (भगवान शंकर) ३. वृक्षमूल (वृक्ष का मूल भाग) और ४. रोगविशेष (ब्रघ्न नाम का रोग)। ब्रह्म शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. वेद, २. तपस् (तपस्या) ३. तत्त्व (सार) और ४. विप्र (ब्राह्मण) किन्तु ५. विधि (विधाता ब्रह्म) अर्थ में ब्रह्मन् शब्द पुल्लिग माना जाता है। ब्रह्मण्य शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. केशव (भगवान कृष्ण) २. ब्रह्मदारुवृक्ष (शहतूत या तूत का वृक्ष विशेष) और ३. शनैश्चर (शनिग्रह)। इस प्रकार बोधन शब्द के तीन और ब्रन शब्द के चार तथा ब्रह्म शब्द के चार और ब्रह्मण्य शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए मूल : ब्रह्मपुत्रः क्षेत्रभेदे नदभेदे विषान्तरे ।
ब्रह्मबन्धुरधिक्षेपे निर्देशे निन्दितद्विजे ॥१३५१।। ब्राम्ह्यं दृश्ये विस्मये च ब्रह्म सम्बन्धिनि त्रिषु ।
भक्ति विभागे श्रद्धायां गौणवृत्तौ च सेवने ॥१३५२॥ हिन्दी टीका ब्रह्मपुत्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. क्षेत्रभेद (क्षेत्रविशेष) २. नदभेद (नद विशेष ब्रह्मपुत्र नाम का महानद) तथा ३. विषान्तर (विष विशेष)। ब्रह्मबन्धु शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं—१. अधिक्षेप (निन्दा) २. निर्देश (उल्लेख) और ३. निन्दितद्विज (निन्दित ब्राह्मण) । ब्राह्मय शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ दृश्य (देखने योग्य) २. विस्मय (आश्चर्य) किन्तु ३. ब्रह्म सम्बन्धी अर्थ में ब्राम्ह्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । भक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१. विभाग (विभाजन करना, जुदा पाड़ना) २. श्रद्धा ३. गौणवृत्ति (लक्षणा नाम की गौणी वृत्ति को भी भक्ति कहते हैं) तथा ४. सेवन (सेवा करना)। इस तरह भक्ति शब्द के चार अर्थ हुए। मूल :
भगं यशसि सौभाग्ये वैराग्ये ज्ञान-वीर्ययोः । श्रियां स्त्रियां सूर्य चन्द्र यत्न माहात्म्य कान्तिषु ।।१३५३।। योनौ धर्मे च कैवल्ये स्पृहा नक्षत्रभेदयोः ।
भटो वीरे म्लेच्छभेदे पामरे रजनीचरे ॥१३५४।। हिन्दी टीका-भग शब्द नपुंसक है और उसके बारह अर्थ माने जाते हैं-१. यशस् (यशख्याति) २. सौभाग्य, ३. वैराग्य, ४. ज्ञान, ५. वीर्य (पराक्रम) ६. श्री (लक्ष्मी) ७. स्त्री, ८. सूर्य, ६. चन्द्र, १०. यत्न, ११. माहात्म्य (महिमा) और १२. कान्ति (तेज विशेष)। भग शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं-१. योनि, २. धर्म, ३. कैवल्य ४. स्पृहा (अभिलाषा) तथा ५. नक्षत्र भेद (नक्षत्र विशेष)। भट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. वीर २. म्लेच्छभेद (म्लेच्छ विशेष) ३. पामर (अधम) और ४. रचनीचर (राक्षस)। मूल :
नाट्योक्त्या नृपतौ देवे पूज्ये भट्टारको मतः । भद्रः शिवे खजरीठे वृषभे च कदम्बके ॥१३५५।।
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