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२३० | नानार्थीदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - प्रकीर्णक शब्द
मूल :
विस्तारे चामरे ग्रन्थ विच्छेदे च प्रकीर्णकम् । प्रकृतिः पञ्चभूतेषु प्रधाने मूलकारणे ॥१३०१॥ प्रखरो हयसन्नाहे कुक्कुरेऽश्वतरे खरे । प्रघणस्ताम्रकुण्डे स्यात् प्रघाणे लौहमुद्गरे । १३०२॥
हिन्दी टीका - प्रकीर्णक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. विस्तार, २. चामर और ३. ग्रन्थविच्छेद ( ग्रन्थ का विभाग ) । प्रकृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. पञ्चभूत ( पृथिवो जल-तेज- वायु आकाश ) २. प्रधान (मुख्य) और ३. मूल कारण (आदिकारण, निदान) । प्रखर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. हयन्नाह (घोड़े का सन्नाह- कमरकस) २. कुक्कुर (कुत्ता) ३. अश्वतर ( खच्चर) तथा ४. खर (गदहा) । प्रघण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. ताम्रpus (ताँबे की कुण्डी, बड़ा घड़ा ) २. प्रघाण (पटदेहर - अलिन्द चौकख का बाहर प्रदेश) और ३. लौहमुद्गर (लोहे का मुद्गर - गदा विशेष ) । मूल :
प्रचालकः शराघाते भुजङ्गम - शिखण्डयोः । प्रजापतिर्महीपाले जामातरि दिवाकरे ।। १३०३ ॥
पितरि त्वष्टरि ब्रह्म- दक्षादि दहनेषु च । प्रज्ञानं लाञ्छने बुद्धौ पण्डिते तु त्रिषु स्मृतम् ॥१३०४॥
हिन्दी टीका-प्रचालक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. शराघात ( बाण का आघात चोट) २. भुजंगम (सर्प) ३. शिखण्ड ( मोर की पांख, बर्हपिच्छ) । प्रजापति शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं - १. महीपाल (राजा) २. जामाता (दामाद) ३. दिवाकर (सूर्य) ४. पिता ५. त्वष्टा (सुतार - बढ़ई) ६. ब्रह्म (ब्रह्मा) ७. दक्षादि (दक्ष वगैरह जो कि महादेवजी के श्वसुर और सती पार्वती के पिता थे ) और ८. दहन (अग्नि) । प्रज्ञान शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं - १. लाञ्छन ( कलंक, चिन्ह ) २. बुद्धि, किन्तु ३. पण्डित अर्थ में प्रज्ञान शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस तरह प्रज्ञान शब्द के तोन अर्थ जानना ।
मूल :
प्रणयः प्रश्रये प्रोम्णि याञ्चानिर्वाणयोरपि । प्रणाय्योऽसंमते साधावभिलाष विवर्जिते ।। १३०५ ॥ प्रतापो ऽर्कतरौ तापे कोषदण्डजतेजसि । प्रतिग्रहः स्वीकरणे सैन्यपृष्ठे पतदुग्रहे ।। १३०६।।
हिन्दी टीका - प्रणय शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. प्रश्रय (विनय ) २. प्रेम ३. याञ्चा ( याचना ) ४. निर्वाण (मोक्ष) । प्रणाय्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. असंमत (अनभिप्रेत) २. साधु और ३. अभिलाषविवर्जित ( इच्छा रहित ) । प्रताप शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. अर्कतरु (आँक का वृक्ष) २. ताप, ३. कोषदण्डजतेज (राजा का प्रताप ) । प्रतिग्रह शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं - १. स्वी
करण (स्वीकार करना) २. सैन्यपृष्ठ (सेना का पीठभाग) और ३. पतद्ग्रह ( पीकदानी ) । द्विजेभ्यो विधिवद्देये तद्ग्रह - ग्रहभेदयोः । प्रतिपद् द्रगडे वाद्ये धिषणा - तिथिभेदयोः ।। १३०७।।
मूल :
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