________________
मूल :
मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - फेरव शब्द | २३५ वाला - फाल्गुन मास) किन्तु ४. तत्पूर्णिमा (फाल्गुन पूर्णिमा के लिये फाल्गुनी--फाल्गुनी पूर्णिमा) शब्द का प्रयोग होता है।
फेरवो राक्षसे फेरौ त्रिलिंगो हिस्र-धूर्तयोः । वडवा वाडवाग्नौ स्याद् घोटक्यां तारकान्तरे ॥१३३३॥ शृगाल कोलौ वदरं कासिफल कोलयोः ।
वधूर्नार्यां स्नुषायां च शारिवौषधि-पृक्कयोः ॥१३३४॥ हिन्दी टीका-फेरव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं—१ राक्षस, २. फेरू फकसियार-गीदड़ विशेष) ३. हिंस्र (घातक) तथा ४. धूर्त (वञ्चक) किन्तु हिंस्र और धूर्त इन दोनों अर्थों में फेरु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। वडवा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं१. वाडवाग्नि (वडवानल) २. घोटकी (घोड़ी) ३. तारकान्तर (तारा विशेष) ४. शृगाल (सियार-गोदड़) और ५. कोल (शूकर)। वदर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. कासिफल (कपास) और २. कोल (शूकर) । वधू शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं--१. नारी, २. स्नुषा (पुत्रवधू) ३. शारिवौषधि (शारिवा नाम का औषध विशेष) तथा ४. पृक्क (पृक्क नाम का वृक्षलता विशेष)।
उद्दामनि वधे रज्जौ हिसायां बन्धनं स्मृतम् । बन्धुः सगोत्रे बन्धू के मित्रे भ्रातरि कीर्तितः ॥१३३५।। बन्धूको बन्धुजीवे स्यात् खधूपे तु नपुंसकम् ।
बन्थूर-बन्धुरौ रम्ये नम्र हंसे तु बन्धुरः ॥१३३६॥ हिन्दी टीका-बन्धन शब्द के चार अर्थ होते हैं -१. उद्दाम (उद्दण्ड-उद्धत) २. वध (मारना) ३. रज्जु (डोरी) और ४. हिंसा (कष्ट देना) । बन्धु शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं१. सगोत्र (एक गोत्र-वंश में उत्पन्न) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल) ३. मित्र और ४. भ्राता । पुल्लिग बन्धूक शब्द का अर्थ–१. बन्धुजोव (बन्धूक पुष्प- दोपहरिया फूल) किन्तु २. खधूप (आकाश की धूप) अर्थ में बन्धूक शब्द नपुंसक है । बन्धूर और बन्धुर शब्दों के दो अर्थ माने गये हैं-१. रम्य (रमणीय-सुन्दर) और २. नम्र (विनीत) किन्तु ३. हंस अर्थ में केवल बन्धुर शब्द का ही प्रयोग होता है, बन्धूर शब्द का नहीं। मूल : बभ्र विशाले नकुले केशवे पावके शिवे ।
बरो जामातरि श्रेष्ठे देवतादेरभीप्सिते ॥१३३७।। बलं गन्धरसे रूपे स्थौल्ये सामर्थ्य-सैन्ययोः ।
बलः संकर्षणे काके दैत्ये वरुण-पादपे ॥१३३८॥ हिन्दी टीका-बभ्र शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं - १. विशाल, २. नकुल (न्यौला, सपनौर) ३. केशव (विष्णु) ४. पावक (अग्नि) और ५. शिव । बर शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. जामाता (दामाद) २. श्रेष्ठ (बड़ा, महान्) और ३. देवतादेरभीप्सित (देवता वगैरह के अभिप्रेत)। नपुंसक बल शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धरस (वोर - गन्धयुक्त रस) २. रूप ३. स्थौल्य (स्थूलता) ४ सामर्थ्य (शक्ति) और ५. सैन्य (सेना)। पुल्लिग बल शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. संकर्षण (बलराम - बलदेव)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org