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२३२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - प्रतिहत शब्द
हिन्दी टीका - प्रतिहत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्विष्ट (शत्रु) २. प्रतिस्खलित ( गिर पड़ना) ३. रुद्ध ( रुका हुआ या रोका गया) । प्रतीकार शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चिकित्सा ( इलाज ) २. वैरनिर्यातन (शत्रुता का बदला चुकाना ) | प्रतीत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. विख्यात, २. सादर (आदरपूर्वक) ३. ज्ञात, ४. हृष्ट (प्रसन्न ) । प्रतीहार शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. द्वारपाल, २. द्वार और ३. सन्धि विशेष ।
मूल :
प्रत्यक् पश्चिमदिक् देश - कालेष्वव्ययमीरितम् । प्रत्ययः शपथे ऽधीने ज्ञानविश्वास हेतुषु ।। १३१५ ।। प्रत्यूषो भास्करे कल्ये वसुभेदेऽपि कीर्तितः ।
प्रधानं प्रकृतौ बुद्धौ प्रशस्ते परमात्मनि ॥१३१६ ॥
हिन्दी टीका - प्रत्यक् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पश्चिमदिक् (पश्चिम दिशा) २. पश्चिमदेश और ३. पश्चिमकाल (अतीतकाल, बीता हुआ काल ) । प्रत्यय शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. शपथ (सौगन्ध ) २. अधीन (परतन्त्र) ३ ज्ञान, ४. विश्वास और ५. हेतु (कारण) । प्रत्यूष शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं--१. भास्कर (सूर्य) २. कल्य ( कल्ह) ३. वसुभेद (वसु विशेष ) । प्रधान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-- १. प्रकृति (सांख्यशास्त्राभिमत मूल प्रकृति) २. बुद्धि, ३. प्रशस्त और ४. परमात्मा (परमेश्वर) इस प्रकार प्रधान शब्द के चार अर्थं जानना । प्रबुद्धस्त्रिषु संफुल्ले पण्डिते जागृतेपि च ।
मूल :
प्रभवो मुनिभेदे स्याद् जन्महेतौ पराक्रमे ।। १३१७।।
प्रभु नारायणे शब्दे जिन पारदयोरपि ।
प्रमाणं नित्य - मर्यादा - शास्त्र हेतु प्रमातृषु ।। १३१८ ||
हिन्दी टीका - प्रबुद्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. संफुल्ल (पुष्पित) २. पण्डित और ३. जागृत ( जगा हुआ ) । प्रभव शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. मुनिभेद ( मुनि विशेष) २. जन्महेतु (जन्म का कारण ) तथा ३. पराक्रम । प्रभु शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. नारायण (भगवान विष्णु ) २. शब्द, ३. जिन, ४. पारद (पारा) । प्रमाण शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १. नित्य, २. मर्यादा ( अवधि सीमा) ३. शास्त्र, ४. हेतु (कारण) और ५. प्रमाता ( प्रमापक यथार्थवक्ता) |
मूल :
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प्रमुखः प्रथमे मान्ये समवाय प्रधानयोः । प्रयागस्तुरगे शक्र े प्रलम्बस्त्रपुषे दैत्ये
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यज्ञ - तीर्थविशेषयोः ।। १३१६ ॥
हारभेदे प्रलम्बने ।
प्रवणः प्रगुणे प्रह्व क्षीणे स्निग्धे प्लुते क्षणे ॥१३२०॥
हिन्दी टीका - प्रमुख शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. प्रथम (पहला) २. मान्य (आदरणीय) ३. समवाय (संघ वगैरह) और ४. प्रधान (मुख्य) । प्रयाग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. तुरग (घोड़ा) २. शक्र (इन्द्र) ३. यज्ञ (याग ) ४. तीर्थविशेष (प्रयाग तीर्थ ) । प्रलम्ब शब्द के भी चार अर्थ माने गये हैं - १. त्रपुष् (रांगा कलई) २. दैत्य (दानव) ३. हारभेद (हार विशेष - मोती हार वगैरह ) और
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