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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पिञ्जर शब्द | २२७ मूल : पिञ्जरं हरिताले स्यात् सुवर्णे नागकेशरे ।
पक्ष्यादिबन्धनागारे शरीरास्थि कदम्बके ॥१२८२।। अश्वभेदे वर्णभेदे पुंसि तद्वत्यसौ त्रिषु ।
पिण्डो बोले बले सान्द्रे निवापे गोल-देशयोः ॥१२८३॥ हिन्दी टीका-नपुंसक पिञ्जर शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं-१. हरिताल (हरिताल नाम का औषध विशेष) २. सुवर्ण (सोना) ३. नागकेशर, ४. पक्ष्यादिबन्धनागार (पक्षी वगैरह को बांधने का घर) ५. शरीरास्थिकदम्बक (शरीर का अस्थिपञ्जर - हड्डी-हाड़ का समुदाय)। किन्तु पुल्लिग पिञ्जर शब्द के दो अर्थ होते हैं -१. अश्वभेद (घोड़ा विशेष) तथा २. वर्णभेद (वर्ण विशेष) परन्तु वर्ण विशेष से युक्त अर्थ में पिञ्जर शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पिण्ड शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. बोल (गन्धरसवोर) २. बल (सामर्थ्य) ३. सान्द्र (सघन निविड) ४. निवाप (पितरों का श्राद्धादि कर्म) ५. गोल (गोलाकार) तथा ६. देश (देश विशेष) ।
सिल्हके स्यात् जपापुष्पे वृन्दे मदनपादपे। गेहैकदेशे कवले देहमात्रे भ - कुम्भयोः ॥१२८४॥ पिशाचे पुंसि पिण्डालुः पिण्डमूले तु न द्वयोः ।
पीयूषममृते दुग्धे नवदुग्धे तु पुंस्यपि ॥१२८५।। हिन्दी टीका-पिण्ड शब्द के और भी नौ अर्थ माने गये हैं - १. भिल्हक (सिल्ह नाम का गन्ध द्रव्य विशेष-लोहवान) २. जपापुष्प (बन्धूक पुष्प) ३. वृन्द (समूह) ४. मदनपादप (धत्तूर का वृक्ष) ५. गेहैकदेश (घर का एक देश) ६. कवल (ग्रास-कौर) ७. देहमात्र (शरीर) ८. भ (नक्षत्र) और १. कुम्भ (घड़ा या कुम्भ राशि)। पुल्लिग पिण्डालु शब्द का अर्थ-१. पिशाच होता है किन्तु २. पिण्डमूल अर्थ में पिण्डालु शब्द नपुंसक माना जाता है। नपुंसक पीयूष शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. अमृत २. दुग्ध (दूध) किन्तु नवदुग्ध अर्थ में पीयूष शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है।
पुण्यं धर्मे व्रते सत्ये पावने शुद्धकर्मणि । सुगन्धौ सुन्दरे पूतात्मनि चोक्त त्रिलिगकम् ॥१२८६॥ पुत्रक: शरभे धूर्ते शैल - पादपभेदयोः ।
पुराऽव्ययं चिरातीते भीरा वासन्नभाविनि ॥१२८७॥ हिन्दी टीका- नपुंसक पुण्य शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. धर्म, २. व्रत, ३. सत्य, ४. पावन (पवित्रता) ५. शद्धकर्म, ६. सगन्धि, ७. सन्दर, किन्त ८. प्रतात्मा (पवित्रात्मा) अर्थ में ण्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुत्रक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं—१. शरभ (सबसे बड़ा पक्षी, शरभ नाम का प्रसिद्ध पक्षी विशेष) २. धूर्त (वञ्चक) ३. शैल (पर्वत) और ४. पादपभेद (वृक्ष विशेष) । पुरा शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चिरातीत (बहुत प्राचीन) २. भीरु (डरपोक) ३. आसन्नभावी (निकट भविष्य में होने वाला) भी पुरा शब्द का अर्थ माना जाता है।
पुलको गन्धर्व भेदे रोमाञ्चे पानभाजने । हरिताले रत्नदोषविशेषो पलभेदयोः ॥१२८८॥
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