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२०२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित नेमि शब्द
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(छल) C. खण्ड (टुकड़ा) १०. नाट्यादि (नाट्य वगैरह ) ११. ऊर्ध्व (ऊपर) और १२ भिन्न । नेमि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. चक्रपरिधि ( चक्की की चौड़ाई तथा लम्बाई) २. कृपान्तिक समस्थल (कूप के निकट की समतल भूमि) ३. कूपोपरिस्थपट्टान्त ( कप के ऊपर स्थापित पताका का अन्त छोर भाग तथा ४. त्रिका (कूप के अन्दर रज्जु वगैरह को धारण करने के लिये दारु यन्त्र विशेष ) । मूल : नेमिः पुमान् रथद्रौ स्याद् मतः तीर्थङ्करान्तरे ।
नैगम स्तूप निषदि वाणिजे नागरे नये ||११३१ ॥
न्यग्रोधः स्यादुवटे व्योम परिमाणे शमीतरौ ।
विषपर्णी लतायां च मोहनाख्यौषधावपि ।।११३२॥
हिन्दी टीका - पुल्लिंग नेमि शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. रथद्र (वजुल - तिनिश नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और २. तीर्थङ्करान्तर (भगवान् तीर्थङ्कर विशेष नेमिनाथ ) । नैगम शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. उपनिषद् (वेदान्त ब्रह्म विद्या) २. वाणिज ( वणिग् व्यापार ) ३. नागर (नागरिक नगरवासी) और ४. नय (द्रव्याथिक - ऋजुसूत्रादि सात नयों में नैगम नाम का प्रसिद्ध नय विशेष ) । न्यग्रोध शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. वट ( वट वृक्ष) २ व्योमपरिमाण (आकाश का परम महत् परिमाण) ३. शमीतरु (शेमर का वृक्ष) ४. विषपर्णीलता (विषपर्णी नाम की लता विशेष) और ५. मोहनाख्य औषधि ( मोहन नामक प्रसिद्ध औषधि विशेष) इस तरह न्यग्रोध शब्द के पाँच अर्थ समझना ।
मूल :
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न्य नीचे वामने निम्ने न्यंकुस्तु हरिणे मणौ ।
न्यक्षं कात्स्न्यें तृणे क्लीवं निकृष्टेऽसौ त्रिलिंगकः ।। ११३३ ॥
जामदग्न्ये लुलापे च पुमान् सद्भिरुदाहृतः ।
न्यायो विष्णौ तर्क शास्त्रे वाक्य भेदे समंजसे ||११३४ ||
हिन्दी टीका - न्यङ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. नीच (नीच अधम) २. वामन (नाटा) और ३. निम्न ( नोचा- गहरा ) । न्यंकु शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. हरिण (मृग ) २. मणि (मणि विशेष ) नपुंसक न्यक्ष शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. कात्स्य (सारा) और २. तृण (घास) किन्तु ३. निकृष्ट अर्थ में न्यक्ष शब्द त्रिलिंग माना जाता है । परन्तु ४. जामदग्न्य (परशुराम) और ५. लुलाप (भैंसा) अर्थ में न्यक्ष शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । न्याय शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-.. विष्णु (भगवान् विष्णु) २. तर्कशास्त्र (न्यायशास्त्र) और ३. वाक्य भेद (पञ्चावयव वाक्य) ४. समञ्जस ।
मूल :
युक्तिमूलक दृष्टान्त विशेषेऽपि प्रकीर्तितः ।
न्यासो ग्रन्थान्तरे त्यागे सन्न्यासे स्थाप्यवस्तुनि ।।११३५ ।। विन्यासेऽन्तर्बहि र्देहवर्णादिन्यास ईरितः । न्युब्जस्त्रिषु रुजाभुग्ने कुब्जा - धोमुखयोरपि ॥ ११३६॥
हिन्दी टीका - न्याय शब्द का एक और भी अर्थ माना जाता है - १. युक्तिमूलक दृष्टान्त विशेष | न्यास शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-- १. ग्रन्थान्तर (न्यास नाम का ग्रन्थ
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