________________
२०४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित–पञ्चगुप्त शब्द मूल : पञ्चगुप्तस्तु चार्वाकदर्शने कच्छपे स्मृतः ।
अथ पंचजनो दैत्य विशेषे पुरुषे मतः ॥११४२।। भण्डे पञ्चजनीनः स्यात् त्रिषु पञ्चजनीप्रभौ ।
पञ्चतत्वं स्मृतं पञ्चभूत पञ्चमकारयोः ॥११४३।। हिन्दी टीका–पञ्च गुप्त शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. चार्वाक दर्शन (नास्तिक दर्शन शास्त्र) और २. कच्छप (काचवा, काछु) । पञ्चजन शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. दैत्य विशेष और २. पुरुष । पुल्लिग पञ्चजनीन शब्द का अर्थ-१. भण्ड (भाण्डघड़ा बर्तन) होता है । किन्तु २. पञ्चजनी प्रभु (पञ्चजन का प्रभु-मालिक) अर्थ में पञ्चजनीन शब्द विलिंग माना जाता है। पञ्चतत्व शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. 'पञ्चभूत (पृथिवी-जल-तेज-वायुआकाश) और २. पञ्चमकार (मत्स्य-मांस-मदिरा-मैथुन-मन्त्र) इस प्रकार पञ्चतत्व शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : मरणे पञ्चभावे च पञ्चत्वं पञ्चता स्त्रियाम् ।
- अथ पंचनख: कूर्मे शार्दूले कुञ्जरे पुमान् ॥११४४॥ पंचमो रुचिरे दक्षे पंचानां पूरणे त्रिषु ।
स्वरान्तरे रागभेदे तन्त्रीकण्ठोत्थितस्वरे ॥११४५॥ हिन्दी टीका-नपुंसक पञ्चत्व शब्द के और स्त्रीलिंग पञ्चता शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. मरण (मृत्यु निधन) और २. पञ्चभाव (पृथिवी-जल-तेजो-वायु-आकाश तत्व) । पञ्चनख शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. कूर्म (कच्छप-काचवा-काछु) २. शार्दूल (शार्दूल नाम का सबसे बड़ा पक्षी विशेष) और ३. कुञ्जर (हाथी)। पुल्लिग पञ्चम शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. रुचिर (सुन्दर) २. दक्ष (निपुण) किन्तु ३. पञ्चानां पूरण (पाँचवाँ) अर्थ में पञ्चम शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पञ्चम शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. स्वरान्तर (स्वरविशेष, निषाद-ऋषभगान्धार वगैरह सप्त स्वरों में पञ्चम नाम का सातवाँ स्वर विशेष) २. रागभेद (राग विशेष) और ३ तन्त्रीकण्ठोत्थित स्वर (वीणा तन्त्री के सहारे कण्ठोत्थित स्वर विशेष)।
पञ्चमी शारिफलके द्रौपदी-तिथिभेदयोः । पञ्चसूना गृहस्थस्य चुल्ली पेषण्युपस्करः ॥११४६॥ कण्डनी चोदकुम्भश्च वध्यते याश्चवाहयन् ।
पञ्चाङ्ग पंजिकायां स्यात् पुरश्चरण कर्मणि ।।११४७।। __ हिन्दी टोका-पञ्चमी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं—१. शारिफलक (पाशा-चौपड़-शतरंज का फलक-घर) और २. द्रौपदी और ३. तिथिभेद (तिथिविशेष-पञ्चमी तिथि)। पञ्चसूना शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ मिले जुले माने जाते हैं-१. चुल्ली (चूल्हा) २. पेषणी (चक्की जांत लोढ़ी सिलौट) ३. उपस्कर (मार्जनी झारू) ४. कण्डनी (चालनी) और ५. उदकुम्भ (पानी का घड़ा) ये पाँच गृहस्थों के लिए दोष विशेष माना जाता है क्योंकि इन पांचों से प्राणी हिंसा होती है। पञ्चाङ्ग शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. पञ्जिका और २. पुरश्चरण कर्म (पूजा जप अनुष्ठान आदि)।
मूल:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org