________________
मूल :
१८८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-निधन शब्द
आधारेऽथ निधिः सिन्धावाधारे जीवकोषधौ।
अज्ञात स्वामिके पृथ्वी निखातेऽर्थे च शेवधौ ॥१०४७॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग निधन शब्द का अर्थ--१. वधतारा (पातक तारा १-३-५-७-१० वगैरह तारा वधतारा) कहलाता है। नपुंसक निधन शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. कुल (वंश) और २. नाश (ध्वंस) । निधान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. निधि (खान) २. कान्ति (काम को पूरा करना) और ३. प्रवेश स्थान तथा ४. आधार । निधि शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं—१. सिन्धु (समुद्र) २. आधार, ३. जीवकोषधि (जीवक नाम का प्रसिद्ध ओषधि विशेष-अष्ट वर्ग के अन्तर्गत जीवक को भी निधि शब्द से व्यवहार किया जाता है)। और ४. अज्ञात स्वामिक पृथिवी निखातअर्थ (भूमि के अन्दर छिपा हुआ धन जिसके मालिक का पता नहीं रहता है ऐसा धन विशेष, अशर्फी वगैरह) तथा ५. शेवधि (निधि-खजाना-खान) इस प्रकार निधि के पाँच अर्थ समझना ।
अथो निधुवनं केलौ कल्पे नर्मणि मैथुने । निन्दाऽपवादे गर्दायां दुष्कृतौ सदुभिरीरिता ॥१०४८।। निपात: पतने मृत्यौ निपो घट कदम्बयोः ।
निपातनं खलीकारेऽवनाये पदसाधने ॥१०४६॥ हिन्दी टीका-निधुवन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं—१. केलि (केलिक्रीड़ा) २. कल्प (प्रलय सृष्टि अथवा वेशभूषा) ३. नर्म (केलि सम्बन्धी मधुर कोमल वचन) ४. मैथुन (रति)। निन्दा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अपवाद (कलंक-आरोप वगैरह) २. गर्दा (निन्दा करना) ३. दुष्कृति (पाप)। निपात शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. पतन, और २. मृत्यु (मरण) । निप शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ घट (घड़ा) और २. कदम्ब (कदम्ब का वृक्ष) । निपातन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. खलीकार (दुष्टआचरण) २. अवनाय (नीचे झुकना) और ३. पद साधन। मूल :
क्लीवं निपान माहावे स्याद् गोदोहन भाजने ।
निबन्धो बन्धने ग्रन्थ वृत्तावानाह निम्बयोः ॥१०५०॥ हिन्दी टोका-नपुंसक निपान शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. आहाव (गाय वगैरह को पानी पीने के लिये बनाया हुआ हौज) २. गोदोहन भाजन (दूध निचोड़ने के लिए पात्र विशेष, डावा)। निबन्ध शब्द के चार अर्थ होते हैं—१. बन्धन, २. ग्रन्थवृत्ति (ग्रन्थ की टोका विशेष) और ३. आनाह (मल-मूत्र निरोधक रोग विशेष अथवा कपड़े की लम्बाई) और ४. निम्ब (निमड़ा निम्ब का वृक्ष) को भी निवन्ध कहते हैं।
निबन्धनं कारणे स्यादुपनाहे च बन्धने । निभः पुमान् मतो व्याजे प्रकाशे सदृशे त्रिषु ॥१०५१।। निमित्तं शकुने चिह्न कारणेऽपि नपुंसकम्। निमिषः कालभेदे स्यादु विष्णौ चक्षुनिमीलने ॥१०५२॥
मूल :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org