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१८६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - निकृति शब्द
मूल :
निकृतिर्भर्त्सने दैन्ये क्षेपे शाठ्य शठे स्त्रियाम् । निकृष्टस्त्रिषु नीचे स्यात् जात्याचारादि निन्दिते ॥। १०३५ ॥ निकेतनः पलाण्डौ स्यात् आलये तु निकेतनम् । निगदस्तु जनैर्वेद्ये जपे च कथनेऽपि च ।। १०३६॥
हिन्दी टीका - निकृति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं - १. भर्त्सन ( धिक्कारना) २, दैन्य ( दीनता) ३. क्षेप ( निन्दा ) ४. शाठ्य ( शठता) और ५. शठ (धृष्ट दुर्जन) । निकृष्ट शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं- १. नीच (अधम ) और २. जात्याचारादि निन्दित (जातिआचार-आचरण वगैरह जिसका खराब | पुल्लिंग निकेतन शब्द का अर्थ - १. पलाण्डु (प्याज- डुंगरी) होता है किन्तु आलय (गृह) अर्थ में निकेतन शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । निगद शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. जनैर्वेद्य ( जनता के जानने योग्य) और २. जप तथा ३. कथन । इस तरह निगद शब्द के तीन अर्थ जानना ।
मूल :
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निगमो वाणिजे हट्ट पुरी - निश्चययोः कटे ।
वेदे मार्गेऽप्यथो होमधूमे निगरणो गले ।।१०३७।।
हिन्दी टीका - निगम शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. वाणिज ( बनिया, वैश्य ) २. हट्ट (हाट बाजार) ३. पुरी (नगरी) ४. निश्चय (निर्णय) ५. कट (चटाई ) ६. वेद और ७. मार्ग ( रास्ता ) । निगरण शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. होमधूम (हवन का धुंआँ) और २. गल (गला) ।
मूल :
निगुर्मूले मले चित्ते चित्रकर्म मनोज्ञयोः । निग्रहोऽनुग्रहाभावे भर्त्सने सीम्नि बन्धने ॥१०३८ || नारायणे चिकित्सायां निघ्नोऽधीनेऽङ्कपूरणे ।
निचितं पूरिते व्याप्ते निचयो निश्चये चये ||१०३६||
हिन्दी टीका - निगु शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. मूल (निदान वर्गरह) २. मल (विकार) ३. चित्त ( मन ) ४. चित्रकर्म (चित्रकला) और ५. मनोज्ञ (सुन्दर) । निग्रह शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. अनुग्रहाभाव (दया न करना, नंष्ठुर्य- निर्दयता) २. भर्त्सन ( धिक्कारना) ३ सीमा ( अवधि, हद) और ४. वन्धन बाँधना ) । निग्रह शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. नारायण (भगवान विष्णु ) और २. चिकित्सा ( इलाज ) । निघ्न शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. अधीन (परतन्त्र) और २ अङ्कपूरण ( संख्या को पूर्ण करना) । निचित शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. पूरित (पूर्ण किया गया, पूरा किया) और २. व्याप्त (परिपूर्ण) । निचय शब्द के दो अर्थ होते हैं१. निश्चय (निर्णय) और २. चय ( समुदाय ) ।
मूल :
निघृष्वो मारुते मार्गे खर- शूकरयोः खुरे । निचुल: कविभेदेस्यान्निचोले स्थलबेतसे ।। १०४०|| वानीरे हिज्जले चाथ निजं नित्य-स्वकीययोः । नितम्बः स्त्रीकटी पश्चादुभागे कटक - रोधसोः ।। १०४१॥
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