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मूल :
१८४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-नारंग शब्द का कीड़ा) और २. स्वदत्ताशा विहन्ता (स्वयं दिये हुए आशा-आश्वासन का विहन्ता स्वयं नाश करने वाला)। मूल : नारङ्गो यमजे बिगे सरंगे पिप्पली रसे ।
नारायणी शतावर्यां गौर्यां भागीरथीश्रियोः ॥१०२४।। हिन्दी टीका -नारंग शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. यमज (युग्म जात) २. पिंग (नपुंसक हिजड़ा) और २. सरंग (नारंगी सन्तरा) तथा ४. पिप्पली रस (पिपरिका का रस-सत्व) । नारायणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. शतावरी (शतावर नाम का प्रसिद्ध औषध विशेष) २. गौरी (पार्वती) ३. भागीरथी (गंगा) और ४. श्रीः (लक्ष्मी) इस प्रकार नारायणी शब्द के चार अर्थ जानना।
श्रीमुद्गल मुनिभार्यायां, विष्णौ नारायणः स्मृतः । नालं पद्मादिदण्डे स्यान्मृणाले जलनिर्गमे ॥१०२५॥ हरिताले गले काण्डे नालः पोटगले मतः ।
'नाली घटी - हस्तिकर्णवेधनी - धमनीषु च ॥१०२६।। हिन्दी टोका - नारायणी शब्द का एक और भी अर्थ होता है-१. श्रीमुद्गल मुनिभार्या (मुद्गल मुनि की धर्मपत्नी)। नारायण शब्द का अर्थ–१, विष्णु (भगवान् विष्णु) होता है। नपुंसक नाल शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. पद्मादिदण्ड (कमल नालदण्ड) २. मृणाल (कमल नाल तन्तु) ३. जलनिर्गम (नाला) ४. हरिताल (हरिताल नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) ५. गल (गला कण्ठ) और ६ काण्ड (वर्ग-समुदाय वगैरह) । पुल्लिग नाल शब्द का अर्थ-१. पोटगल (नरकट-नरई) होता है। नाली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. घटी (छोटा घड़ा) २. हस्ति कर्णवेधनी (हाथी के कर्ण को वेधने वाला अंकुश विशेष) और ३. धमनी (नस)।
पद्म शाक कडम्बेऽथ नालिको महिषेऽम्बुजे । नालीको विशिखे शल्ये नालीकं कमले स्मृतम् ॥१०२७।। नाशो मृत्यौ परिध्वंसेऽनुपलम्भे पलायने ।
नासा तु नासिकायां स्यात्काष्ठे द्वारोपरिस्थिते ॥१०२८॥ हिन्दी टीका-नकारान्त नाली शब्द के दो अर्थ होते हैं---१. पद्म (कमल) और २. शाककडम्ब (कडम्ब-करभी शाक विशेष)। नालिक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं—१. महिष (भैस-भैंसा) और २. अम्बुज (कमल)। पुल्लिग नालीक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१ विशिख (बाण) और २. शल्य (अस्त्र विशेष) और नपुंसक नालीक शब्द का अर्थ-१. कमल होता है। नाश शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. मृत्यु (मरण) २. परिध्वंस (सर्वनाश) ३. अनुपलम्भ (नहीं मिलना) और ४. पलायन (भाग जाना)। नासा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. नासिका (नाक) और २. द्वारोपरिस्थित काष्ठ (द्वार के ऊपरी भाग में स्थापित काष्ठ विशेष) इस प्रकार नासा शब्द के दो अर्थ समझने चाहिये।
निःशेषं शेषरहिते समग्रेऽपि त्रिलिंगकम् । निःश्रेयसं शुभे भक्तौ मुक्तौ विद्याऽनुभावयोः ॥१०२६॥
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