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१३४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित -तन्त्र शब्द
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(बछड़ा) । तन्तुवाय शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. कुविन्दक ( जुलाहा - कपड़ा बुनने वाला) २ तन्त्र (तन्त्र विशेष कार्यक्रम) एवं ३. तन्त्रवाय (तन्त्र - कार्यक्रम का संचालक) और ४. ऊर्णनाभ (मकरा, कड़ोलिया) । तन्तुशाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. गर्तिका (खड्ढा) होता है । और १. स्यूत (सिला हुआ) अर्थ में तन्तुसन्तत शब्द का प्रयोग होता है ।
मूल :
तन्त्रं परिच्छदे हेतौ तन्तुवायेऽर्थसाधके ।
सैन्ये स्वराष्ट्रचिन्तायां परच्छन्दे धने गृहे ॥ ७२६ ॥ कुटुम्ब कृत्ये सिद्धान्ते कुले वपनसाधने । प्रधाने भेषजे तन्तु - श्रुतिशाखा विशेषयोः ॥ ७३० ॥
८. धन
हिन्दी टीका -- तन्त्र शब्द नपुंसक है और उसके सतरह अर्थ माने जाते हैं - १. परिच्छद (परिवार) २ हेतु (कारण) ३. तन्तुवाय ( जुलाहा ) ४. अर्थसाधक ( अर्थ का साधक) ५. सैन्य ( सेना समूह ) ६. स्वराष्ट्र चिन्ता (अपने राष्ट्र के रक्षण करने की चिन्ता) ७. परच्छन्द ( दूसरे का अनुवर्तन) ६. गृह (घर) १०. कुटुम्बकृत्य (परिवार सम्बन्धी कर्तव्य ) ११. सिद्धान्त १२. कुल ( वंश खानदान) १३. वपन साधन (बीज बोने का साधन विशेष अथवा काटने का साधन विशेष ) १४. प्रधान (मुख्य) १५. भेषज (औषध) १६. तन्तु (धागा) और १७. श्रुति शाखा विशेष (वेद की शाखा विशेष ) को भी तन्त्र शब्द से व्यवहार किया जाता है ।
मूल :
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शपथे करणे राष्ट्र उभयार्थ प्रयोजके ।
इति कर्तव्यतायां च तन्त्रशास्त्र प्रबन्धयाः ।। ७३१ । तन्त्रवापस्तन्त्रवायः कुविन्दे तन्त्रभूतयोः ।
तन्त्री वीणा गुणे रज्जौ गुडूच्यां सरिदन्तरे ।। ७३२ ॥
हिन्दी टीका -- तन्त्र शब्द के और भी सात अर्थ माने गये हैं - १. शपथ (सौगन्ध खाना) २ करण ( क्रिया करने के साधन इन्द्रिय वगैरह ) ३. राष्ट्र (देश) ४. उभयार्थ प्रयोजक (उभयार्थ अर्थ और काम अथवा धर्म और मोक्ष का प्रवर्तक) को भी तन्त्र शब्द से व्यवहार किया जाता है ५. इतिकर्तव्यता (कार्य करने की पद्धति) ६. तन्त्र शास्त्र तथा ७. प्रबन्ध (कार्य करने का उपाय) को भी तन्त्र शब्द से प्रयोग किया जाता है । तन्त्रवाप और तन्त्रवाय शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. कुविन्द ( जुलाहा ) २. तन्त्र तथा ३. लूता (मकरा कड़ोलिया) । इस प्रकार तन्त्रवाय और तन्त्रवाप शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए । तन्त्री शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. वीणागुण ( वीणा की तन्त्री डोरी ) २. रज्जु (रस्सी - डोरी) ३. गुडूची (गिलोय, गुडीच) और ४: सरिदन्तर (नदी विशेष) इस तरह तन्त्री शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए ।
मूल :
शिरायां युवती भेदे तन्द्रा निद्रा प्रमीलयोः । तन्वी कृश शरीरायां शालपर्णी महीरुहे ।। ७३३ ॥ तपो लोकान्तरे धर्मे कृच्छ्र चान्द्रायणादिके । पुमानदन्तो ग्रीष्मेऽथ तपनः सूर्य तापयोः ॥ ७३४ ॥
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