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मूल :
१७२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धार शब्द मूल : ऋणे प्रान्ते च गम्भीरे स्यादथो धारणा मतौ।
मर्यादायां च योगांगे ब्रह्मणि स्वान्त धारणे ॥ ६५२ ॥ धारणी नाडिकायां च श्रेणी-बुद्धोक्तमन्त्रयोः ।
धारा सैन्याग्रिमस्कन्धे समूह-रथ चक्रयोः ॥ ६५३ ॥ हिन्दी टीका-धार शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ऋण, २. प्रान्त और ३. गम्भीर । धारणा शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. मति (बुद्धि) २. मर्यादा (सीमा अवधि) ३. योगाङ्ग (यम नियमादि आठ योगों का पांचवां धारणा नाम का अङ्ग) ४. ब्रह्म (परमात्मा) और ५. स्वान्तधारण (अपने हृदय में धारण करना) । धारणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. नाडिका (नस) २. श्रेणी (पंक्ति) और ३. बुद्धोक्तमन्त्र (भगवान बुद्ध से उक्त मन्त्र विशेष) । धारा शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं—१. सैन्य अग्रिम स्कन्ध (सेनाओं का अगला स्कन्ध) २. समूह (समुदाय) और ३. रथचक्र (गाड़ी का पहिया) । इस तरह धारा शब्द के तीन अर्थ जानना।
सन्ततौ सदृशे कीर्ती जीमूतासारवर्षणे । • द्रवप्रपाते उत्कर्ष - खड्गादिनिशिताग्रयोः ।। ६५४ ।।
अतिवृष्टौं घटच्छिद्रे वाजिनां पञ्चधागतौं ।
धारांकुरः शोकरे स्यान्नाशीरे च घनोपले ॥ ६५५ ॥ हिन्दी टोका-धारा शब्द के और भी दस अर्थ माने जाते हैं-१. सन्तति (सन्तान) २. सदृश (सरखा) ३. कीर्ति ४. जीमूतासारवर्षण (मेघ का मूसलाधार वर्षण) ५. द्रवप्रपात (झग्ना) ६ उत्कर्ष उन्नति) ७. खड्गादिनिशिताग्र (तलवार की तीखी धार) ८. अतिवृष्टि (अत्यन्त वर्षा) ६. घटच्छिद्र (घड़ा का छेद-सूगख) तथा १०. वाजिनां पञ्चधागति (घोड़े की पांच प्रकार की चाल)। धारांकुर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. शीकर (बूंद) २. नाशीर और ३ घनोपल (मेघ का ओला)। मूल :
धाराटो घोटके मेघे चातके मत्तकुञ्जरे।
धाराधरो घने खड्गे धाराङ्गस्तीर्थ-खड्गयोः ॥ ६५६ ॥ हिन्दी टीका-धाराट शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. घोटक (घोड़ा) २ मेघ (बादल) ३ चातक ४. मत्तकुञ्जर (मतवाला हाथी)। धाराधर शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. धन (मेघ) और २. खड्ग (तलवार) । धाराङ्ग शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. तीर्थ और २. खड्ग (तलवार) । इस तरह धाराङ्ग शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : धारिणी धरणौ देवस्त्रीगणे शाल्मलतरौं ।
धार्तराष्ट्रो हंस - सर्पभेदे दुर्योधनादिके ॥ ६५७ ॥ धावनं गमने शुद्धौ पृश्निपण्यां तु धावनी। धातकी-कंटकार्योश्च धावितो माजिते गते ॥ ६५८ ॥
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