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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - देवन शब्द | १६३
तीन अर्थ होते हैं -- १. पद्मनाभ (विष्णु) २. महादेव (शंकर) और ३. जिनेश्वर ( भगवान तीर्थङ्कर ) । देवन शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ होते हैं - १. कमल, २. द्यूत (जुआ), ३. व्यवहार, ४. गति, ५. द्युति (कान्ति) ६. लीलोद्यान (क्रीड़ा का बगीचा) ७. जिगीषा ( जीतने की इच्छा ) ८. फ्रीड़ा, ६. स्तुति और १०. शोक, इस प्रकार देवन शब्द के दस अर्थ जानना ।
मूल :
कान्तौविलापे स्यात् क्लीवं देवनः पाशके पुमान् । देवना वरिवस्यायां क्रीडायामपि कीर्तिता ॥ १०१ ॥ देवयुर्धार्मिके लोकयातृके त्रिदशे स्मृतः । देवलो नारदे देवाजीवे मुन्यन्तरे पुमान् ॥
६०२ ॥
शब्द के दो अर्थ
हिन्दी टीका - नपुंसक देवन शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. कान्ति, और २. विलाप किन्तु पुल्लिंग देवन शब्द का अर्थ पाशक (पाशा चौपड़) होता है । स्त्रीलिंग देवना माने जाते हैं - १. वरिवस्या (पूजा) और २. क्रीड़ा ( खेलना ) । देवयु शब्द पुल्लिंग है अर्थ माने गये हैं—१. धार्मिक (धर्मात्मा ) २. लोकयातृक और ३. त्रिदश (देवता) । है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. नारद (नारद ऋषि) २. देवाजीव (पुजारी) ३. मुन्यन्तर ( मुनि विशेष ) ।
और उसके तीन देवल शब्द पुल्लिंग
मूल :
देवोपजीविजीवे च धार्मिके देवरे स्मृतः ।
देववृक्षस्तु मन्दारे सप्तपर्णे च गुग्गुलौ ॥ ६०३ ॥
हिन्दी टीका — देवल शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. देवोपजीविजीव (देव का उपजीवी जीव (पुजारी वगैरह ) और २. धार्मिक (धर्मात्मा) तथा ३. देवर ( पति का छोटा भाई ) । देववृक्ष शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. मन्दार ( फूल विशेष ) २. सप्तपर्ण ( वृक्ष विशेष) और ३. गुग्गुलु ( गुग्गल ) ।
मूल :
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अथ देवश्रुतः शास्त्रे ईश्वरे नारदेमुनौ ।
देवी कृताभिषेकायां दुर्गायां देवयोषिति ॥ ६०४ ॥ स्पृक्कायां ब्राह्मणी नामोपपदे मुस्तकान्तरे । बन्ध्या कर्कोटकी - मूर्वाऽऽदित्यभक्ताऽतसीषु च ॥
६०५ ॥
हिन्दी टीका - देवश्रुत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं -- १. शास्त्र, २. ईश्वर (भगवान) ३. नारद मुनि । देवी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ माने जाते हैं - १. कृताभिषेका (पट्टमहिषी) २. दुर्गा, ३. देवयोषित (देवांगना ) ४. स्पृक्का (शाक विशेष ) ५. ब्राह्मणी नामोपपद (ब्राह्मणी के लिए उपनाम के रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला ) ६. मुस्तकान्तर (मोथा) ७. बन्ध्या ८ कर्कोटकी ( ककुरी, कांकोर स्त्री जाति) ६. मूर्वा ( भी ) १०. आदित्य भक्ता और ११. अतसी (अलसी ) |
मूल :
शालपर्ण्य हरीतक्यां लिङ्गिनी - पाठयोरपि ।
महाद्रोणी मृगेवरु शारिवा पक्षिजातिषु ॥ ६०६ ॥
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