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मूल :
१६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-धन शब्द पात्र (तैल भाजन-तेल का बर्तन विशेष) और २. जीवन-उपाय (जीवन निर्वाह का साधन) तथा ४. गोधन । धनञ्जय शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. अर्जुन (तृतीय पाण्डव) २. वन्हि (अग्निआग) ३. चित्रक (चीता) और ४. देहमारुत (शरीर के अन्दर रहने वाला धनञ्जय नाम का वायु विशेष) तथा ५ नागभेद (नागविशेष, सर्पविशेष) एवं ६. अर्जुनतरु (धव वृक्ष--पिप्पल का वृक्ष)। धनद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं–१. गुह्यकेश्वर (कुबेर) और २. हिज्जल (जलबेंत-स्थलबेंत) किन्तु ३. वित्तादि प्रदाता (धन वगैरह का दाता) अर्थ में धनद शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी धनदाता हो सकता है।
धनाध्यक्षः किन्नरेश - धनाधिकृतयोरपि । धनिकः पुंसि धन्याके धवे धनवति त्रिषु ॥ ६३० ॥ साधौ च धनिका साधु स्त्रियां तरुण योषिति ।
वध्वां प्रियंगु वृक्षेऽथ धनुराशौ च कामु के ॥ ६३१ ।। हिन्दो टोका–धनाध्यक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं --किन्नरेश (गन्धर्व विशेष का मालिक कुवेर) और २. धनाधिकृत (धन का अधिकारी) । धनिक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. धन्याक (धनिया, धाना) और २. धव (पिप्पल का वृक्ष या वट का वृक्ष अथवा पाकर का वृक्ष) किन्तु ३. धनवान् (धनी) अर्थ में धनिक शब्द त्रिलिंग माना गया है क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी धनिक हो सकता है और ४ साधु (अच्छा) अर्थ में भी धनिक शब्द त्रिलिंग ही माना जाता है, क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण कोई भी साधु हो सकता है। धनिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. साधू स्त्री (अच्छी औरत २. तरुण योषित (युवती स्त्री) ३. वधू (नवोढ़ा नवयुवती) और ४. प्रियंगुवृक्ष (ककुनी-टाँगुन-फली वृक्ष विशेष) । धनुष शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. राशि (धनु राशि) और २. कामुक (धनुष)। मूल:
भल्लातके धनुर्वक्षो धन्वनेऽश्वत्थ-वंशयोः । धन्वन्तरिदिवोदासे देववैद्ये कवौ स्मृतः ।। ६३२ ॥ धन्वी दुरालभा - पार्थ - बकुलेष्वर्जुनद्रुमे ।
क्र रे भस्त्राध्मापके च त्रिषु स्याद् धमनो नले ॥ ६३३ ॥ हिन्दी टीका–धनुष शब्द का और भी एक अर्थ माना जाता है-१. भल्लातक (भाला)। धनुर्वृक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं—१. धन्वा (मरुस्थल, मरुभूमि, रेगिस्तान) २ अश्वत्थ (पिप्पल का वृक्ष) और ३. वंश (बांस)। धन्वन्तरि शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. दिवोदास (दिवोदास नाम के प्रसिद्ध वैद्य विशेष) २. देववैद्य (धन्वन्तरि वैद्य देवताओं के वैद्य माने जाते हैं) और ३. कवि भी धन्वन्तरि शब्द का अर्थ माना जाता है। धन्वो शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है और उसके छह अर्थ होते हैं—१. दुरालभा (जवासा-यवासा) २. पार्थ (अर्जुन) ३. वकुल (मोलशरी, भालसरी) और ४. अर्जुनद्र म (अर्जुन कौपीतक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) तथा ५. क्रूर (घातक) एवं ६. भस्त्राध्मापक (भस्त्रा-धौंकनी-भाथी को फूंकने वाला) । धमन शब्द त्रिलिंग है और उसका अर्थनल (नली-नलिका) होता है।
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