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१४२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ताली शब्द किन्तु ४. प्रसारितांगुलिकर (थप्पड़) और ५. काचनकी (लिखित निबन्ध) इन दो अर्थों में तालिका शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। ताली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. तुवरिका (तुवर-अरहर-राहरि) एवं २. तालमूली मूसलीकन्द) इन दोनों के पत्रद्र म (पत्ते और वृक्ष) को ताली कहते हैं। इस तरह ताली शब्द के दो अर्थ जानना। मूल :
प्रतिताली-सुराभेद - कुञ्चिकाऽऽमलकीष्वपि । ताम्रवल्ल्यामथोतिक्त: सुगन्धे करणद्रुमे ।। ७७७ ।। कुटजे रसभेदेऽपि त्रिषु तिक्तरसान्विते ।
तिक्तक: कृष्णखदिरे चिरतिक्त - पटोलयोः ॥ ७७८ ।। हिन्दी टीका- ताली शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. प्रतिताली (चाभी) २. सूराभेद (शराब विशेष) ३ कुञ्चिका (ताला) ४. आमलकी (आँवला-धात्री) तथा ५. ताम्रवल्ली (लता विशेष) को भी तालो कहते हैं । तिक्त शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. सुगन्ध (खुशबू) २. करुणद्र म (वृक्ष विशेष, करौना) ३. कुटज (गिरिमल्लिका, कुरैया, कौरेया नाम का प्रसिद्ध फूल विशेष) और ४. रसभेद (रस विशेष, तीता रस, नीमड़ा वगैरह) किन्तु ५. तिक्तरसान्वित (तिक्त रस से युक्त) अर्थ में तिक्त शब्द त्रिलिंग है । तिक्तक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कृष्णखदिर (काले रङ्ग का कत्था) २. चिरतिक्त (चिरैता) तथा ३. पटोल (परबल)। मूल :
इंगुदी पादपे तिक्ता षड्भुजा-पाठयोरपि । यवतिक्ता लता-घ्राण दुःखदा कटुकीषु च ।। ७७६ ।। तिथः कालेऽनले कामे प्रावृट् काले तिथिईयोः ।
कर्मवाटयामथो मीने समुद्रेऽपि तिमिः स्मृतः ॥ ७८० ॥ हिन्दी टीका-तिक्ता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं --१. इंगुदीपादप (डिठ वरन) २. षड्भुजा (छह हाथ वाली भगवती काली दुर्गा) ३. पाठ, ४. यव, ५. तिक्तालता (लता विशेष जो कि कड़वी होती है उसको भी तिक्ता कहते हैं), और ६. घ्राण दुःखदा कटुको (नाक को दुःख देने वाली कटुकी छोंकनी नोसि वगैरह का वृक्ष)। तिथ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. काल, २. अनल (अग्नि) ३. काम (कामदेव) और ४. प्रावृट्काल (वर्षा ऋतु)। तिथि शब्द १. कर्मवाटी (बगीचा विशेष)। तिमि शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. मीन (मछली) और २ समुद्र। इस प्रकार तिमि शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : तिरोऽन्तौँ तिरस्कारे तिर्यगर्थेऽव्ययं मतम् ।
तिर्यङ त्रिषु विहङ्गादौ पशौ कुटिलगामिनि ।। ७८१ ॥ हिन्दी टीका-तिरस् शब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अन्तद्धि (तिरोहित होना, छिप जाना) २. तिरस्कार (अपमान) और तिर्यक् अर्थ (टेढ़ा)। तिर्यङ शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विहंगादि (पक्षी वगैरह) २. पशु और ३. कुटिलगामी। मूल : तिलः शस्यविशेषेऽपि तिलकालक उच्यते ।
तिलकोऽश्वान्तरे रोगप्रभेदे तिलकालके ॥ ७८२ ॥
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