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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तिल शब्द | १४३ वृक्षभेदे मरुवके प्रधाने ध्रुवकान्तरे।
अस्त्रियां पुण्ड्रके क्लीवं क्लोम्नि सौवर्चलेऽसिते ॥ ७८३॥ हिन्दी टीका-तिल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं- १. शस्य विशेष (तिल, तिल्ली) और २. तिलकालक (तिलवा, शरीर में काला तिल का चिह्न विशेष)। तिलक शब्द भी पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. अश्वान्तर (घोड़ा विशेष) २ रोग प्रभेद (रोग विशेष) ३. तिल कालक (तिल का चिह्न) और ४. वृक्षभेद (वृक्ष विशेष) ५. मरुवक (मदन-मयनफल नाम क ६. प्रधान (मुख्य) और ७. ध्र वकान्तर (ध्र वक विशेष) किन्तु १. पुण्ड्रक (कुन्द फूल या माधवी लता) अर्थ में तिलक शब्द त्रिलिंग माना जाता है, परन्तु १. क्लोमन् (पेट में जल रहने का स्थान विशेष) और २. सौवर्चल (क्षार नमक विशेष, संचर) और ३. असित (काला) इन तीनों अर्थों में तिलक शब्द नपुंसक ही माना जाता है।
तिष्यः कलियुगे पुष्यनक्षत्रे पौषमासि च । तीरं वाणे नदीकूले गङ्गातीरे च सीसके ॥ ७८४ ॥ तीर्णोऽभिभूत उत्तीर्ण-प्लुतयो स्त्रिषु कीर्तितः।
तीर्थ पात्रेऽध्वरे क्षेत्रे पुण्यस्थान-निदानयोः ॥ ७८५ ॥ हिन्दी टीका-तिष्य शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कलियुग, २. पुष्यनक्षत्र, ३. पौषमास । तीर शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. वाण (शर) २. नदीकूल (नदी का तट-किनारा) और ३. गंगातीर तथा ४. सीसक (शीशा विशेष) । तीर्ण शब्द १. अभिभूत (पराजित) २. उत्तीर्ण और ३. प्लुत (कूदकर चलना) इन तीन अर्थों में त्रिलिंग माना जाता है । तीर्थ शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. पात्र (योग्य) २. अध्वर (यज्ञ) ३. क्षेत्र (खेत, स्थान) ४. पुण्य स्थान (धर्म स्थान, शत्रुञ्जय, गिरनार वगैरह) तथा ५. निदान (आदि कारण, मूल निदान)।
उपाये दर्शने घ8 नारीरजसि मन्त्रिणि । ऋषिजुष्टजले शास्त्रे उपाध्यायावतारयोः ॥ ७८६ ॥ आगमे ब्राह्मणे यौनौ साध्वादि समुदायके ।
तीर्थङ्कर स्तीर्थकर स्तीर्थकृद् भगवज्जिने ॥ ७८७ ॥ हिन्दो टोका-तीर्थ शब्द के और भी तेरह अर्थ माने जाते हैं-१. उपाय, २. दर्शन, ३. घट्ट (घाट) ४. नारी रज (रजोधर्म, मासिकधर्म) ५. मन्त्री, ६. ऋषिजुष्टजल (मुनि महर्षियों से सेवित जल विशेष) ७. शास्त्र, ८. उपाध्याय (अध्यापक विशेष) ६. अवतार (नदी, तालाब में उतरने का सोपान) और १०. आगम (वेद, भगवती सूत्र वगैरह) ११. ब्राह्मण तथा १२. योनि एवं १३. साध्वादि समुदाय (साधु मुनि मण्डली)। इस तरह कुल मिलाकर तीर्थ शब्द के अठारह अर्थ जानना चाहिए। तीर्थंकर तथा तीर्थकर और तीर्थकृत इन शब्दों का अर्थ–१. भगवजिन (भगवान जिन आदिनाथ से लेकर महावीर स्वामी पर्यन्त) होता है । इस तरह तीर्थङ्कर तीर्थकर तीर्थकृद् इन तीनों शब्दों का एक ही अर्थभगवान जिन समझना चाहिए।
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