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१५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - दक्षिण शब्द
मूल :
दक्षिणो दक्षिणोद्भूते परच्छन्दानुवर्तिनि । आरामे सरले दक्षेऽपसव्ये नायकान्तरे ।। ८४५ ।। दक्षिणा नायिकाभेद-यज्ञादि विधिदानयोः । दिगन्तरे प्रतिष्ठायां दाडिमः करकैलयोः ॥ ८४६ ॥
हिन्दी टीका - दक्षिण शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. दक्षिणोद्भुत ( दक्षिणा से उत्पन्न ) २. परच्छन्दानुवर्ति (दूसरे का अनुयायी - अनुसरण कर चलने वाला) ३. आराम ( बगीचा - उद्यान) ४. सरल (सीधा या देवदारु वृक्ष) ५. दक्ष (निपुण ) ६. अपसव्य ( बायाँ भाग) तथा ७. नायकान्तर (नायक विशेष दक्षिण नायक ) । दक्षिणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- नायिकाभेद ( नायिका विशेष - दक्षिण नायिका) २. यज्ञादिविधिदान (यज्ञादि कर्म की दक्षिणा ) ३. दिगन्तर (दक्षिण दिशा) और ४. प्रतिष्ठा ( इज्जत, ख्याति ) । दाडिम शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. करका (अनार) और २. एला (बड़ी इलाइची ) । इस तरह दाडिम अर्थं जानना चाहिए | मूल :
शब्द के दो
स्त्रीपुंसयोः स्याद् दात्यूहश्चातके कालकण्ठके । जलका के वारिवाहे लवित्रे दात्रमुच्यते ॥ ८४७ ॥ दानं गजमदे शुद्धौ छेदने त्याग - रक्षयोः । दानुर्दातरि विक्रान्ते मारुते शर्मणि त्रिषु ॥ ८४८ ॥
हिन्दी टीका - दात्यूह शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. चातक (चातक नाम का पक्षी विशेष, जो कि स्वाती नक्षत्र के जल की बूंद चाहता है) २. कालकण्ठक (नीलकण्ठ पक्षी विशेष ) ३. जलकाक (जल जन्तु पक्षी विशेष) और ४. वारिवाह (मेघ बादल) । दात्र शब्द का अर्थ - १. लवित्र ( खन्ती, दरांती) होता है। दान शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. गजमद (हाथी का मदजल) २. शुद्धि (पवित्रता) २. छेदन, ४. त्याग और ५. रक्षा (रक्षा करना) । दानु शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. दाता, २. विक्रान्त (पराक्रमी ) ३. मारुत (वायु, पवन) और ४. शर्म (सुख)। इस तरह दानु शब्द के चार अर्थ जानना ।
मूल :
दमिते दातरि त्रिषु ।
दान्तस्तपः क्लेश सहे वित्तायत्तीकृते दाम
रज्जु - संदानयो र्नना ॥ ८४६ ॥
हिन्दी टीका - दान्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. तपः क्लेशसह (तपस्याजन्य क्लेश को सहन करने वाला) २. दमित ( वश में किया हुआ) ३. दाता और ४ वित्तायत्तीकृत (वित्त के अधीन किया हुआ) । दामन् शब्द नपुंसक तथा स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. रज्जु (डोरी) और २. संदान (बन्धन रज्जु) । मूल :
दायो दाने यौतुकादौ स्थाने सोल्लुण्ठ भाषणे । विभक्तव्य पितृद्रव्ये लय - खण्डनयोरपि ।। ८५० ॥ दारदः पारदे सिन्धौ हिंगुले गरलान्तरे । दार्वी दारु हरिद्रायां देवदारु-हरिद्रयोः ॥ ८५१ ॥
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