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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - चमस शब्द | १०७ लड्डुके पिष्टभेद-पर्पटयोरपि ।
चमसो
चमसी मुद्ग माषादि शुष्कचूर्णेऽभिधीयते ॥ ५७७ ।।
चमूः सेना विशेषेऽपि सेनामात्रेऽपि कीर्तिता । गद्यपद्यमयी
वाणी
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चम्पूरित्यभिधीयते ॥ ५७८ ॥
हिन्दी टोका - चमस शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. लड्डुक (लड्डू लाडवा) २. पिष्ट भेद (पिष्टातक गोला पिठार) और ३. पर्पट (पपरी ) । चमसी शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - ४. मुद्गमाषादि शुष्क चूर्ण (मूंग उड़द वगैरह धान्य विशेष का शुष्क चूर्ण) को चमसी शब्द से व्यवहार किया जाता है । चमू शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. सेना विशेष ( हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल सेना विशेष को) चमू कहते हैं और २. सेना मात्र (साधारण सेना) को भी वमू शब्द से व्यवहार किया जाता है । चम्पू शब्द का अर्थ - गद्यपद्यमय वाणी (गद्य और पद्य इन दोनों का समूह विशेष) होता है ।
मूल :
चयः समूहे प्राकारे पीठे वप्रे चरः कपर्दके भौमे खञ्जरीटे अक्षद्यूतप्रभेदेऽथ चरकः पर्पटे
समाहृतौ ।
स्पशे चले ।। ५७६ ॥
मुनौ । गमनाऽऽचार - भक्षणेषु नपुंसकम् ॥ ५८० ॥
चरणं
हिन्दी टीका -- चय शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. समूह संघ, समुदाय) २. प्राकार (परकोटा, चारदीवारी, किला) ३. पीठ (आसन विशेष, चौकी, पीढ़ी इत्यादि) ४. वप्र ( भींड स्तूप, मिट्टी का ढेर ) और ५. समाहृति (समाहार, एकत्रीकरण इत्यादि) । चर शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. कपद्द क ( कौड़ी, छदाम) २. भौम (मंगल) ३. खञ्जरीट ( खञ्जन चिड़िया ) ४. स्पश (गूढ़चर, गुप्त पुरुष सी० आई० डी० ) और ५. चल. ( चलायमान वस्तु) एवं ६. अक्षद्यूतप्रभेद (पाशा चौपड़) इस तरह चर शब्द के छह अर्थ जानना । चरक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. पर्पट (पपरी) और २. मुनि (ऋषि विशेष जिन्होंने चरक नाम का आयुर्वेद ग्रंथ बनाया है । चरण शब्द नपुंसक है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं - १. गमन ( गमन करना) २. आचार (शिष्टों का आचरण) और ३. भक्षण (भोजन करना) ।
मूल :
अस्त्रियां बहृवृचादौ स्यान्मूलेऽपि पद गोत्रयोः । चराचरं स्याद् भुवने जङ्गमाजङ्गमे दिवि ॥ ५८१ ॥ इष्टे कपर्दके पुंसि चरित्रं चरिते स्मृतम् । चर्चरीको महाकाले केश विन्यास शाकयोः ॥ ५८२ ॥
हिन्दी टीका - अस्त्री- पुल्लिंग और नपुंसक चरण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं१. बह्वृचादि (ऋग्वेद-यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद की शाखा को ) चरण कहते हैं । २. पद मूल (पद का मूल) और ३ गोत्र मूल (वंश का मूल ) इस प्रकार चरण शब्द के कुल मिलाकर छह अर्थ जानना चाहिए। चराचर शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. भुवन (संसार, जगत) २. जंगमा
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