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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - जयपाल शब्द | १२१ जयपालो विधौ विष्णौ भूपाले बीजरेचने । दुर्गायां पार्वती- सख्यां विजयातिथिभेदयोः ॥ ६५५ ॥ शान्ता वृक्षे हरीतक्यामग्निमन्थे द्रुमान्तरे । नील दूर्वा-वैजयन्तीभेदयोश्च जया स्मृता ॥ ६५६ ॥
८.
हिन्दी टीका - जयपाल शब्द पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं - १. विधि (विधाता ) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. भूपाल (राजा) ४. बीजरेचन (बीजवपन आदि) ५. दुर्गा (पार्वती भवानी) ६. पार्वती सखी ( दुर्गा भवानी का सखी-सहेली विशेष) ७. विजया और तिथि भेद (तिथि विशेष अथवा विजया तिथि आश्विन शुक्ल दशमी तिथि) को भी जयपाल शब्द से व्यवहार किया जाता है । जया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. शान्तावृक्ष ( वृक्ष विशेष) २. हरीतकी (हरें ) ३. अग्निमन्थ ( आग का मन्थन ) ४. द्र मान्तर ( वृक्ष विशेष) और ५. नील दूर्वा (नील दूभी; हरी दूर्वा ) ६. वैजयन्ती भेद ( पताका झण्डा विशेष ) ।
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जरठो जीर्ण - कठिन जरा-कर्कश पाण्डुषु ।
जरणो जीरके कासमर्दे सौवर्चले स्मृतः ।। ६५७ ।। जरद्गवो जीर्णवृक्ष - गृध्रपक्षि - विशेषयोः । जरा स्याद् राक्षसीभेदे वार्द्धक्ये क्षीरिका द्रुमे ॥
६५८ ॥
हिन्दी टीका - जरठ शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. जीर्ण (जूना पुराना ) २. कठिन (कठोर) ३. जरा ( बुढ़ापा ) ४. कर्कश (कड़ा) और ५. पाण्डु (पाण्डु रंग) । जरण शब्द भी पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. जीरक (जीरा-जीर) २. कासमर्द (वेसवार, एक प्रकार का मसाला या छौंक गुल्म विभेद, तरिपात वगैरह ) ३. सौवर्चल ( संचर नमक अथवा सज्जी खार या सोचर खार, क्षार विशेष नमक विशेष ) । जरद्गव शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. जीर्णवृक्ष (पुराना वृक्ष) और २. गृध्र पक्षि विशेष ( गीध पक्षी) । जरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. राक्षसीभेद (राक्षसी विशेष) २. वार्धक्य ( बुढ़ापा) और ३. क्षीरिका द्रुम (खिरनी का वृक्ष) इस प्रकार जरा शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये ।
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जरन्तो महिषे वृद्धे जरसानस्तु मानवे ।
गर्भाशये जरायु: स्यात् अग्निजारमहीरुहे ।। ६५६ ॥
हिन्दी टीका - जरन्त शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. महिष (भैंसा ) २. वृद्ध (बुड्ढा) | जरसान शब्द का अर्थ १. मानव ( मनुष्य मात्र) होता है । जरायु शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. गर्भाशय (योनि, गर्भ का वेष्टन - लपेटने वाला चर्पपुटक ) और २. अग्नि जार महीरुह ( अग्नि जार नाम का वृक्ष विशेष) इस तरह जरायु शब्द के दो अर्थ
हुए ।
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जर्जरः शैलजे शक्रध्वजे शीर्णे जर्जरीको बहुच्छिद्रद्रव्ये त्रिषु
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जरातुरे । जरातुरे ।। ६६० ।।
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