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१२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - ज्ञाति शब्द
२. इन्दु (चन्द्र) ३. कर्पूर, ४. सुत और ५. अगद ( नीरोग ) । ज्ञ शब्द के चार अर्थ होते - १. पण्डित, २. सौम्य (भद्र) ३. सदानन्द ( पूर्ण आनन्द) और ४ महीसुत (मंगल) ।
ज्ञातिस्ताते सपिण्डादौ प्राग्जिने ज्ञानदर्पणः ॥ ६६४ ॥
हिन्दी टीका - ज्ञाति शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. तात (पिता) और २. सपिण्डादि (गोतिया ) | ज्ञान दर्पण शब्द का अर्थ - - १ प्राग्जिन ( पूर्व भव का जिन भगवान) होता है । ज्ञानं मोक्षधियि ज्ञानी दैवज्ञ ज्ञानयुक्तयोः ।
मूल :
ज्या शिञ्जिन्यां जनन्यां वसुधायामपि स्मृता ॥ ६६५ ।। ज्यानिन जीर्णतायां तटिन्यामपि कीर्तिता । ज्येष्ठोऽग्रजे ज्येष्ठमासि श्रेष्ठेऽधिकवयोयुते ॥ ६६६ ॥
हिन्दी टीका - ज्ञान शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. मोक्षधी (मोक्ष विषयक ज्ञान --तत्व ज्ञान, केवल ज्ञान ) है । ज्ञानी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. दैवज्ञ ( ज्योतिषी) और २. ज्ञानयुक्त (ज्ञान सम्पन्न) । ज्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. शिञ्जिनी (प्रत्यञ्चा, धनुष की डोरी, मौर्वी) २. जननी (माता) और ३. वसुधा ( पृथिवी ) । ज्यानि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. हानि, २. जीर्णता (पच जाना) और ३. तटिनी (नदी) । ज्येष्ठ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. अग्रज ( बड़ा भाई) २. ज्येष्ठमास (जेठ महीना ) ३. श्रेष्ठ (बड़ा, आदरणीय) और ४. अधिकवयोत (अधिक अयु वाला) इस प्रकार ज्येष्ठ शब्द के चार अर्थ जानना ।
मूल :
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ज्योतिः प्रकाशे नक्षत्रे दृष्टावपि नपुंसकम् । पुमान् वैश्वानरे सूर्ये मेथिकायामपीष्यते ॥ ६६७ ॥ ज्योतिश्चक्र' राशिचक्र खद्योते ज्योतिरिङ्गणः । ज्योत्स्ना पटोलिका दुर्गा चन्द्रिकोल्लासि रात्रिषु ॥ ६६८ ॥ कौमुद्यां श्वेतघोषायां ज्वरो ज्वरण-रोगयोः । ज्वल दीप्तियुते दीप्तौ ज्वालो वैश्वानराचिषि ॥ ६६६ ॥
हिन्दी टीका - ज्योति शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. प्रकाश ( उजियाला ) २. नक्षत्र (सूर्यादि ग्रह नक्षत्र मण्डल) और ३. दृष्टि (दर्शन- प्रत्यक्ष वगैरह ) को भी ज्योति शब्द से व्यवहार किया जाता है । किन्तु पुल्लिंग ज्योतिः शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं १. वैश्वानर (अग्नि- आग ) २. सूर्य और ३. मेथिका (मेथी) । ज्योतिश्चक्र शब्द भी नपुंसक है और उसका एक अर्थ होता है१. राशिचक्र ( मेष वृष मिथुन वगैरह बारह राशि ) २ खद्योतक (जुगनू - मगजोगनी) अर्थ में ज्योतिरिङ्गण शब्द का व्यवहार होता है । ज्योत्स्ना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. पटोलिका (परबल) २. दुर्गा (पारवती ) ३. चन्द्रिकोल्लासि रात्रि (चाँदनी से उल्लसित सुशोभित रात) और ४. कौमुदी (चाँदनी) ५. श्वेतघोषा (सफेद झोंपड़ी, कपड़े की बनायी हुई खोपरी झोंपड़ी ) । ज्वर शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. ज्वरण (जलना) और २. रोग ( रोग विशेष - बुखार) को भी ज्वर शब्द से लिया जाता है । ज्वल शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दीप्तियुत
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