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१३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -- टंक शब्द
अर्थ - कुशाण होता है । झिल्ली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. झिल्लिकाकीट ( झींगुर ) २. वत्ति (वाती) ३. उद्वर्तन ( उबटन शरीर के मल को दूर करने का चूर्ण विशेष) और ४. अंशुक (लहँगा साया ) एवं ५. स्थाली संलग्नदग्धान्न ( वटलोही में लगा हुआ दग्धान्न-जला हुआ अन्न) और ६. आतप रुचि (तड़का - धूप की रुचि कान्ति- प्रकाश तेज) ।
मूल :
टङ्कोऽवलेपे
जंघायां कोपे पाषाणदारणे ।
परिमाणान्तरे कोषे करवाले पुमान् स्मृतः ।। ७०६ ॥
अस्त्री नीलकपित्थे टङ्कणे दर्प- खनित्रयोः । टङ्कको रुप्यके टङ्ककशाला रुप्यकालये ।। ७०७ ।।
हिन्दी टोका - पुल्लिंग टङ्क शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं - १. अवलेप ( घमण्ड दर्प अथवा लेप विशेष) २. जंघा (जाँघ ) ३. कोप, ४. पाषाणदारण (पत्थर को तोड़ने का लोहे का साधन विशेष ) और ५. परिमाणान्तर ( परिमाण विशेष) एवं ६. कोष ( तिजोरी) और ७. करवाल (तलवार) और पुल्लिंग तथा नपुंसक टङ्क शब्द के चार अर्थ जानना चाहिये - १. नील कपित्थ (नीला-हरा- कपित्थकदम्ब) २. टङ्कण (टांकण, पीन, आलपीन) और ३. दर्प (घमण्ड अहंकार ) ४. खनित्र ( खन्ती ) । टङ्कक शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. रूप्यक ( रुपया ) है । टङ्ककशाला शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. रुप्यकालय (रुपये बनाने का घर, जहाँ रुपये बनाये जाते हैं) । टङ्कारस्तु प्रसिद्धौ स्यादाश्चर्ये शिञ्जिनीध्वनौ ।
मूल :
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टङ्गोऽस्त्रियां खनित्रे स्यात् जंघानिस्त्रिंशभेदयोः ||७०८ ॥ टिट्टिभ: पक्षिभेदे स्यादु इन्द्रारिदानवान्तरे ।
टीका विवरणग्रन्थे टीकायां टिप्पनी स्मृता ॥ ७०६ ॥
हिन्दी टोका-टङ्कार शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. प्रसिद्धि ( ख्याति) २. आश्चर्य, ३. शिञ्जिनी ध्वनि (धनुष टङ्कार ) । टङ्ग शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. खनित्र (खन्ती) २. जंघा (जाँघ ) और ३. निस्त्रिश भेद (तलवार विशेष ) । टिट्टिभ शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. पक्षि भेद ( पक्षो विशेष टिटही नाम का पक्षी) और २. इन्द्रारिदानवान्तर (इन्द्र का शत्रु राक्षस विशेष ) । टीका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - विवरण - ग्रन्थ ( विवरण खुलासा करने वाला ग्रन्थ विशेष जिससे मूल ग्रन्थ का तात्पर्य या आशय समझ में आ जाता है उसको टीका कहते हैं) और १. टिप्पनी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ - १. टीका (विवरण) होता है ।
मूल :
टुण्टुकः कृष्णखदिरे भेदे श्योनाकपक्षिणोः ।
क्रूरे नीचे त्रिलिंगोऽसौटङ्गिणी पादपे स्त्रियाम् ।। ७१० ।। ठक्कुरो देवतायां स्याद् ठेरो वृद्ध े त्रिलिंगकः । डमरू: स्याच्चमत्कारे-कपालियोगि वाद्ययोः ।। ७११ ॥ डल्लकं वंशरचित पात्रादौ लकुचे डहुः । डिङ्गरः सेवके धूर्ते क्षेप- डङ्गरयोः खले ॥ ७१२ ।।
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