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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-जीवन्ती शब्द | १२७ मूल : वन्दायामथ जीवन्ती शमी वन्दास्रवासु च ।
जीवा वचायामवनौशिञ्जिते जीवनीतरौ ॥ ६८८ ॥ मौर्वी जीवितयोरस्त्री जीवातुर्जीविनौषधौ ।
ओदने जीवितेचाथो जीवात्मा स्यात् शरीरिणि ॥६८६॥ हिन्दी टोका-जीवन्ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. वन्दा (वृक्ष के ऊपर उत्पन्न लता विशेष बन्दा, बाँदा, बाँझ) को भी जीवन्ती कहते हैं और २. शमी (शमी वृक्ष विशेष) को भी जीवन्ती शब्द से व्यवहार किया जाता है। और ३. बन्दा (बाँझ) को भी जीवन्ती कहते हैं। जीवा शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. वचा (वचा नाम का औषध विशेष) और २. अवनि (पृथ्वी) एवं ३. शिञ्जित (नूपर की ध्वनि आवाज) और ४. जीवनी तरु (जीवनी नाम का वृक्ष विशेष) ५. मौर्वी (धनुष की डोरी प्रत्यञ्चा) को भी जीवा कहते हैं एवं ६. जीवित (जीवन) को भी जीवा कहते हैं किन्तु इन दोनों अर्थों में स्त्रीलिंग नहीं माना जाता । जीवा शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. जीवनौषध, २. ओदन (भात) और ३. जीवित । जी गत्मा शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. शरीरी (जीव) होता है। इस तरह जीवा शब्द के नौ और जीवात्मा का एक अर्थ हुए। मूल : जीवितेशः सहस्रांशौ चन्दिरे जीवितेश्वरे ।
प्रिये कृतान्ते जीवातौ जूटककेशबन्धने ॥ ६६० ॥ जूणि ब्रह्मणि मार्तण्डे वेगेज्वर-शरीरयोः ।
जृम्भस्त्रिषु विकाशे स्यात् जृम्भणे स्फारितेऽपि च ॥६६१॥ हिन्दी टीका-जीवितेश शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. चन्दिर (चन्द्रमा) ३. जीवितेश्वर (प्राणनाथ) ४. प्रिय, 1. कृतान्त (धर्मराज) ६. जीवातु (जीवात्मा)। जूटक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. केश बन्धन (जूड़ा धम्मिल्ल) होता है। जूणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. ब्रह्म (परब्रह्म परमात्मा) २. मार्तण्ड (सूर्य) ३. वेग, ४. ज्वर, ५. शरीर । जुम्भ शब्द त्रिलिंग है और उसके अर्थ-१. विकास होता है, और २. जृम्भण (मुंह फाड़ना) अर्थ में भी जुम्भ शब्द का प्रयोग होता है तथा ३. स्फारित (मुख को फारना) भी जुम्भ शब्द का अर्थ माना जाता है। मूल : जम्भितं तु प्रवृद्ध स्यात् स्फुटितं च विचेष्टिते ।
जृम्भे स्त्रीकरणे जैनो जिनोपासक-बौद्धयोः ॥ ६६२ ॥ आयुष्मतीन्दौ कर्पू रे सुते जैवातृकोऽगदे ।
ज्ञः स्मृतः पण्डिते सौम्ये सदानन्दे महीसुते ॥ ६६३ ॥ हिन्दी टीका-जम्भित शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. प्रवृद्ध (बढ़ा हआ) २. स्फुटित (स्पष्ट) २. विचेष्टित (विशेष चेष्टा) ४. जृम्भ (मुंह फाड़ना) और ५. स्त्रीकरण (स्त्रीकरण) । जैन शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जिनोपासक (भगवान जिन का उपासक भक्त) और २. बौद्ध (भगवान बुद्ध का उपासक) । जैवातृक शब्द के पाँच अर्थ होते हैं-१. आयुष्मान,
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