________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चुक्र शब्द | ११३ हिन्दो टीका-नपुंसक चुक्र शब्द का और भी एक अर्थ होता है-१. काजिक (कांजी) किन्तु पुल्लिग चुक्र शब्द के और दो अर्थ होते हैं - १. अम्लवेतस (खट्टा वेतस लता विशेष) और २. अम्लरस (खट्टा रस विशेष, कोकन, आमिल वगैरह) । चुञ्चुली शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-तिन्तिडी द्यूत (इमली तेतरि का द्यूत जुआ)। चूचूक शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. कुचानन (स्तन का अग्र भाग) है । चुम्बक शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. कान्त पाषाण (चुम्बक लोहा) २. घटस्य ऊर्ध्वालम्बन (घड़ा को ऊपर भाग में आलम्बन करने वाला थामकर रखने वाला लोहे का जंजीर विशेष) और ३. बहु ग्रन्थैकदेशज्ञ (अनेक ग्रन्थों के एक देश भाग का ज्ञाता) एवं ४. धूर्त (शैतान वञ्चक) और ५. चुम्बनतत्पर (चुम्बन करने वाला)। मूल : चुलुको भाण्डभेदे स्यात् प्रसृतौ घनकर्दमे ।
चूडा शिखाग्रवडभी कूप बहिशिखासु च ॥ ६११ ।। हिन्दी टीका - चुलुक शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. भाण्डभेद (बर्तन विशेष) २. प्रसृति (तलेटी तरहत्थी) ३. घनकर्दम (सघन कीचड़) ४. चूड़ा (चोटी) ५. शिखा (चोटला, टीक) ६. अग्रवल भी (धरनि) ७. कूप, ८. बहिशिखा (मोर का पिच्छ)। मूल : बाहुभूषण - संस्कारभेदयोरपि कीर्तिता।
चूडामणिः शिरोरत्ने काकचिञ्चाफले पुमान् ॥ ६१२ ॥ वंगीय पण्डितोपाधौ योगभेदे स्मृतो बुधैः ।
चूर्ण क्षोदे वासयोगे धूलि-क्षार-विशेषणे ।। ६१३ ।। हिन्दी टोका-चूडा शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. बाहुभूषण (बाँह का अलंकार विशेष बाजूबन्ध, केयूर वगैरह) और २. संस्कारभेद (संस्कारविशेष)। चूडामणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने हैं -१ शिरोरत्न (शिरोभूषण विशेष) २. काकचिचाफल (करजनी, चनौटी, मंगा) ३. वंगीय पण्डितोगधि (बंगाली पण्डितों को उपाधि विशेष, अवटङ्क) और ४. योगभेद (योग समाधि विशेष) को भी चूडामणि कहते हैं । चूर्ण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. क्षोद (चूर्ण) २. वासयोग (पटवास विशेष पाउडर वगैरह) ३. धूलि (गर्दा) और ४. क्षार विशेषण (राख) इस तरह चूर्ण शब्द के चार अर्थ जानना।
चैत्यो देवतरौ बुद्ध ऽश्वत्थे जिनसभातरौ । क्लीवश्चितागृहे यज्ञगृहे ज्ञानिनि तु त्रि षु ॥ ६१४ ॥ चैत्रं मृते देवकुले पुमांस्तु बुद्धभिक्षुके ।
वर्ष पर्वतभेदे मासभेदे बुधात्मजे ॥ ६१५ ॥ हिन्दी टोका-चैत्य शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. देवतरु (कल्पवृक्ष) २. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) ३. अश्वत्थ (पीपल का वृक्ष) ४. जिनसभातरु (जिन भगवान तीर्थङ्कर का सभा वृक्ष) किन्तु क्लीव नपुंसक चैत्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. चितागृह (मुर्दा जलाने का घर) और २. यज्ञगृह (यज्ञ मण्डप विशेष) परन्तु १. ज्ञानी (ज्ञानवान्) अर्थ में चैत्य शब्द त्रिलिग माना जाता है। चैत्र शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मृत (मरा हुआ) और देवकुल (देव मन्दिर)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org