________________
मूल :
११६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-छित्वर शब्द ५ सादृश्य (सरखापन) ६. कात्यायनी (दुर्गा पार्वती) और ७. सुशोभा । छायासुत शब्द का अर्थ शनि होता है।
छित्वरश्छेदनद्रव्ये धूर्ते वैरिणि चेष्यते । छिदिरः परशौ रज्जौ निस्त्रिशे हव्यवाहने ॥ ६२७ ॥ छिदुरस्तु सपत्ने स्याच्छेदन द्रव्य धूर्तयोः ।
छिद्रं बिलेदूषणे च रन्ध्र छिन्नन्तु खण्डिता ॥ ६२८ ।। हिन्दी टीका-छित्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. छेदन द्रव्य (काटने का साधन खनित्र खनती कुठार वगैरह) २. धूर्त (वञ्चक) और ३. वैरी (शत्रु) भी छित्वर शब्द का अर्थ समझा जाता है। छिदिर शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. परशु (फर्शा) २. रज्जु (रस्सी-डोरी) ३. निस्त्रिश (अस्त्र विशेष) और ४. हव्यवाहन (अग्नि देवता)। छिदुर शब्द पहिलग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. सपत्न (शत्र) २. छेदनद्रव्य (छैनी खनती कठारी वगैरह) और ३. धूर्त (वञ्चक) । छिद्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. बिल (सूराख) २. दूषण ओर ३. रन्ध्र (सुराख) । छिन्न शब्द का अर्थ-१. खण्डित (कटा हुआ) होता है। मूल : . छुपो युद्ध क्षुपे स्पर्श चपलेऽपि निगद्यते ।
छुछुन्दरी स्त्रियां गन्धमूषिकायामथो छुरा।। ६२६ ॥ चूर्णे सुधायां छुरिकाऽसिपुत्र्यां गदिता बुधैः ।
छेको गृहासक्त खगमृगयो गरे त्रिषु ॥ ६३० ।। हिन्दी टीका-छुप शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. युद्ध (संग्राम) २.क्षप (कियारी) ३. स्पर्श, और ४. चपल (चचल)। छछन्दरा शब्द स्त्रीलिग है और उसका अर्थ-गन्धमूषिका- छछुन्दरी है । छुरा शब्द भी स्त्रीलिंग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं१. चूर्ण, और २. सुधा (चूना) । छुरिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. असि पुत्री (छुरी) होता है। छेक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं .. १. गृहासक्त (गृह में आसक्त पुरुष स्त्रंण २. खग (पक्षी विशेष) और ३. मृग (हरिण अथवा पशु) किन्तु १. नागर (नागरिक) अर्थ में छेक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मूल : छेदनं कर्तने भेदे छोरणं परिवर्तने ।
जगत् क्लीवं च संसारे ना वायौ त्रिषु जंगमे ॥ ६३१ ॥ जगती भुवने छन्दो विशेषे धरणौ जने ।
जम्बूवप्रेऽथ जगलो धूर्ते मदनपादपे ॥ ६३२ ॥ हिन्दी टोका-छेदन शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कर्तन (काटना) २. भेद (भेदन करना)। छोरण शब्द भी नपुंसक ही माना जाता है और उसका अर्थ- १. परिवर्तन (पलटना) होता है । जगत् शब्द भी नपुंसक है और उसका अर्थ-१. संसार (दुनिया) होता है किन्तु २. वायु (पवन) अर्थ में जगत् शब्द को पुल्लिग माना जाता है परन्तु ३. जंगम (गमनशील गति वाला) अर्थ में त्रिलिग माना जाता है। जगती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं- १. भुवन (संसार) २. छन्दो विशेष (जगती छन्द) ३. धरणि (पृथिवी) ४. जन और ५. जम्बूवप्र (जम्बू का वप्र--
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org