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१०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-चर्चा शब्द जंगम (स्थावर जंगम) और ३. दिव (लोक, स्वर्गलोक) किन्तु पुल्लिग चराचर शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. इष्ट (अभीष्ट, मनोऽभिलषित) और २ कपर्दक (कौड़ी, वराटिका)। चारित्र शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. चरित (चरित्र, करेक्टर) होता है। चर्चरीक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. महाकाल (काल भैरव) और २ केशविन्यास (केश की सजावट) एवं ३. शाक (शाक विशेष) को भी चर्चरीक शब्द से व्यवहार किया जाता है। इस तरह चर्चरीक शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। .... मूल : चर्चा विचारणा दुर्गा चिन्तासु स्थासकेऽपि च ।
चर्माऽजिने च फलके शरीरावरणेन्द्रिये ॥ ५८३ ॥ पुंसिस्याच्चर्म पुटकश्चर्म निर्मित भाजने ।
ईर्ष्यापथस्थितौ चर्याचर्वणं दन्तचूर्णने ।। ५८४ ।। हिन्दी टोका-चर्चा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. विचारणा (मनन परस्पर चिन्तन) २. दुर्गा (पार्वती) ३. चिन्ता, ४. स्थासक (शरीरादि में लगाने का चन्दन) और ५. चर्माजिन (मृगचर्म) ६. फलक (पट्टिका, पीढ़ी इत्यादि) एवं ७. शरीरावरणइन्द्रिय (शरीर का आवरणभूत इन्द्रिय विशेष) को भी चर्चा शब्द से व्यवहार करते हैं। चर्मपुटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ१. चर्मनिर्मित भाजन (चमड़े का बनाया हुआ भाजन पात्र विशेष, कुप्पी) । चर्या शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता है और उसका अर्थ-१. ईर्यापथस्थिति (ईर्यापथ नाम के योग समाधि की स्थिति अवस्था विशेष) होता है। चर्वण शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. दन्त वूर्णन (दन्तचूर्ण-दांत से चर्वण करना चबाना) होता है । इस तरह चर्या शब्द का और चर्वण शब्द का भी एक-एक अर्थ जानना चाहिए । मूल :
चलं लोले चलः कम्पे कम्पयुक्त त्वसौ त्रिषु । चषकोऽस्त्री सुरापात्रे मधु मद्य विशेषयोः ॥ ५८५ ॥ चक्षा जीव उपाध्याये चक्षुः क्लीबं विलोचने ।
चक्षुष्पं खर्परी तुत्थ सौवीराजनयोरपि ।। ५.८६ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक चल शब्द का अर्थ-१. लोल (चञ्चल) होता है और पुल्लिग चल शब्द का अर्थ -२. कम्प (काँपना) होता है किन्तु ३. कम्पयुक्त अर्थ में चल शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुरुष स्त्री साधारण कम्पयुक्त हो सकता है इसीलिए कम्पयुक्त अर्थ में चल शब्द को तीनों लिंगो में प्रयोग किया जाता है । चषक शब्द भी अस्त्री--पुल्लिग नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सुरापात्र (शराब का पात्र भाजन, प्याला) और २. मधु (शहद) और ३. मद्यविशेष (शराब विशेष) को भी चषक शब्द से व्यवहार किया जाता है। चक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. जीव और २. उपाध्याय । चक्षुः शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ-१. विलोचन (नेत्र) होता है । चक्षुष्प शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. खर्परी तुत्थ (छोटी इलाइची और नील गड़ी) और २. सौवीराजन (अञ्जन विशेष, सुरमा) इस तरह चक्षुष्प शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये। मूल :
प्रपौण्डरीकेऽथ पुमान् पुण्डरीके रसाञ्जने । शोभाञ्जने केतकेऽथ रम्ये चक्षुर्हिते त्रिषु ॥ ५८७ ॥
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