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६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-कुन्तल शब्द इत्यादि । कुन्त शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके चार अर्थ होते हैं-१. भल्लास्त्र, २. चण्डत्व (प्रचण्ड-उग्र तीव्र इत्यादि) ३. क्षुद्र जन्तु (क्षुद्र जन्तु विशेष) और ४. गवेधु (मुनि-अन्न)। मूल : कुन्तलो लाङ्गले केशे ह्रीवेरे चषके यवे ।
कुन्ती स्त्री पाण्डुभार्यायां शल्लक्यां गुग्गुलुद्रुमे ।। ३५५ ।। हिन्दी टीका- कुन्तल शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं -१. लांगल (हलका दण्ड लागन) २. केश (बाल) ३. ह्रीवेर नेत्र वाला) ४. चषक (शराब पीने का प्याला) और ५. यव (जो नाम का धान्य विशेष)। ती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१ पाण्डुभार्या (कून्ती नाम की युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन की माता) २. शल्लकी (शाही नाम का पशु-जन्तु विशेष जिसके सम्पूर्ण शरीर में कांटे ही कांटे होते हैं) और ३. गुग्गुलुद्र म (गुग्गल का वृक्ष)। मूल : ब्राह्मण्यामप्यथो कुन्थुश्चक्रवर्ति जिनान्तरे।
कुन्दोऽस्त्री माध्य पुष्पे स्यात् निध्यन्तरे स्मृतः ॥ ३५६ ॥ हिन्दी टीका-१. ब्राह्मणी को कुन्थु शब्द से व्यवहार करते हैं और २. चक्रवर्ती जिनान्तर (चक्रवर्ती सार्वभौम राजा जिनेश्वर विशेष) को भी कुन्थु शब्द से व्यवहार किया जाता है। इस तरह कुन्थु शब्द का अर्थ जानना-ब्राह्मणी और चक्रवर्ती जिन। कुन्द शब्द पुल्लिग एवं नपुंसक भी माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. माध्य पुष्प (जूही) और २. निध्यन्तर (निधि विशेष)। किन्तु निधि विशेष अर्थ में कुन्द शब्द पुल्लिग ही माना गया है । मूल : कुन्दुरौ भ्रमियन्त्रेऽपि करवीरमहीरुहे।
कब्जस्त्रिलिंगो गडुले खड्गापामार्गयोः पुमान् ॥ ३५७ ॥ हिन्दी टोका-१. कुन्दुरु (पालक का साग) एवं २. भ्रमियन्त्र (भ्रमियन्त्र विशेष) और ३. करवीर महीरुह (करवीर नाम का फूल का वृक्ष विशेष) को भी कुन्द शब्द से व्यवहार किया जाता है। कुब्ज शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं। उनमें १. गडुल अर्थ में त्रिलिंग और २. खड़ग और ३. अपामार्ग (चिरचिरी) इन दोनों अर्थों में पुल्लिग ही माना गया है । गडुल -जल जन्तु विशेष को कहते हैं, वे जल में ही पाये जाते हैं। मूल : कुत्रं तन्तौ वने कुण्डे कुण्डले शकटेंऽनसि ।
कुमारः कार्तिकेये स्यात् पञ्चवर्षीय बालके ।। ३५८ ॥ हिन्दो टोका-कुब्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. तन्तु (धागा-सूत्र) २. वन (जंगल) ३. कुण्ड, ४. कुण्डल, ५. शकट, और ६. अनस् (गाड़ो विशेष वगैरह) । कुमार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. कार्तिकेय और २. पंचवर्षीय बालक (पांच वर्ष के बालक को भी कुमार कहते हैं)। मूल : शुक्रऽश्ववारके सिन्धुनदे वरुणपादपे।
जिनोपासकभेदेऽपि युवराजे प्रकीर्त्यते ।। ३५६ ॥ - हिन्दी टीका-१. शुक्राचार्य एवं २. अश्ववारक (कोचवान्) तथा ३. सिन्धुनद और ४ वरुणपादप (वरुण नाम के वृक्ष विशेष को भी) कुमार शब्द से व्यवहार किया जाता है । इसी प्रकार ५. जिनो
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