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८२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-खर शब्द मूल :
गन्धद्रव्ये नखीनाम्नि पुमान् छेदन वस्तुनि ।
खुल्लको निष्ठुरे निःस्वे खले नीच-कनिष्ठयोः ॥ ४३६ ।। हिन्दो टीका-पुल्लिग खुर शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. गन्धद्रव्य (सेण्ट-इत्र) २. नखी नाम और ३. छेदन वस्तु (छेदन करने का साधन खनित्र छैनी वगैरह) । खुल्लक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. निष्ठुर (कठोर) २. निःस्व (गरीब) ३. खल (दुर्जन) ४. नीच (अधम) और कनिष्ठ (छोटा भाई) इस प्रकार खुल्लक शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : खुल्लतात पुमान् पितृ-कनिष्ठ भ्रातरि स्मृतः ।।
खेचरः पारदे विद्या-धरे शम्भौ नभश्चरे ।। ४४० ॥ हिन्दी टोका-खुल्लतात शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ १. पितृकनिष्ठभ्राता (पिता का छोटा भाई-चाचा) होता है। खेचर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. पारद (पारा) २. विद्याधर (देव योनि) ३. शम्मु (शङ्कर) और ४. नभश्चर (आकाश में विचरने वाला)। मूल : खेटः ग्रहे पुमान् नीचे हये त्रिषु सुनन्दके ।
अस्त्रियां मृगया ग्राम-भेद-चर्म-कफेषु च ॥ ४४१ ।। हिन्दी टोका-खेट शब्द पुल्लिग है और उसका १. ग्रह अर्थ होता है किन्तु २. नीच (अधम) ३. हय (घोड़ा) और ४. सुनन्दक इन तीन अर्थों में खेट शब्द त्रिलिंग माना जाता है; १. मृगया (शिकार) २. ग्रामभेद (ग्रामविशेष, छोटा गाँव झौंपड़ी वगैरह) ३. चर्म और ४. कफ (जुकाम) भी खेट शब्द का अर्थ माना जाता है किन्तु खेट शब्द मृगया-ग्रामभेद-चर्म-कफ इन चारों अर्थों में पुल्लिग नपुंसक है। मूल : खेटको ग्रामभेदे स्यात् फलके वसुनन्दके ।
खोलक: शीर्षके पूगकोषे बल्मीक पाकयोः ॥ ४४२ ॥ हिन्दी टोका-खेटक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. ग्रामभेद (ग्रामविशेष छोटा गाँव) २. फलक (पाट) और ३. वसुनन्दक (आठ वसुओं का नन्दक आनन्ददायक)। खोलक शब्द पूल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. शीर्षक (मस्तक) २. पूग कोष (सुपारी का खजाना भण्डार) ३. वल्मीक (दीमक) और ४. पावक । मूल : गज औषधपाकार्थ-गर्तभेदे मतङ्गजे ।
हस्तद्वयात्मके माने वास्तु स्थानान्तरे पुमान् ॥ ४४३ ॥ हिन्दी टोका---गज शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. औषध पाकार्थ गर्तभेद (औषध पकाने का खड्डा विशेष) २. मतङ्गज हाथी, ३. हस्तद्वयात्मकमान (दो हाथों का मापदण्ड विशेष गज) और ४. वास्तुस्थानान्तर (वास्तु का स्थान विशेष) । मूल : गजो गोष्ठगृहे भाण्डागार-ऽवज्ञाऽऽकरेष्वपि ।
गजा खनौ मद्य भाण्डे मदिरानीचवेश्मनि ॥ ४४४ ।। हिन्दी टीका-गञ्ज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गोष्ठगृह (गोशाला)
गज
आप
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