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६४ । नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गोला शब्द
मूल :
गोला गोदावरी- दुर्गा कुनटी- मण्डलष्वपि । पत्राञ्जनेऽलिञ्जरे च बाल क्रीड़न दारुणि ॥। ५०२ ॥ गोलोमी श्वेतदुर्वायां - षड्ग्रन्था-भूतकेशयोः । गोलोमिकाऽभिधक्षुद्रक्षुपे वारस्त्रियामपि ॥ ५०३ ।।
हिन्दी टीका - गोला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. गोदावरी (नदी विशेष) २. दुर्गा (पार्वती) ३. कुनटी मण्डल (बरहरूपिया ४. पत्राञ्जन ( अञ्जन विशेष ) ५. अलिञ्जर (कुण्डा, भाँड) ६. बाल क्रीडनदारु (बच्चों का खेलने का लकड़ी का खिलौना, रमकड़ा) । गोलोमी शब्द स्त्रीलिंग है। और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. श्वेतदूर्वा (सफेद दूभी) २. षड्ग्रन्था (गोलोमकृत षड्ग्रन्थ विशेष को भी गोलोमी कहते हैं । ३. भूतकेश (जटामांसी) और ४. गोलोमिकाभिध क्षुद्र क्षुप ( शाखोट वगैरह छोटी शाखा डाल वाला वृक्ष, गाँछी) और ५. वार- स्त्री ( वेश्या, वाराङ्गना रण्डी) ।
मूल :
गोविन्दः परमब्रह्म - कृष्णयो गधिपे गुरौ ।
गोष्ठी सभायां संलापे पोष्यवर्गेऽपि कीर्तिता ।। ५०४॥ गोष्पदं गोखुर श्वभ्र क्लीबं गोसेवित स्थले । गौः पुमान् चन्दिरे सूर्ये किरणे स्वर्गवज्रयोः ।। ५०५ ।।
हिन्दी टोका - गोविन्द शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. परमब्रह्म (परमेश्वर) २. कृष्ण (भगवान कृष्ण ) ३. गोऽधिप ( गोस्वामी) और ४. गुरु (आचार्य उपाध्याय वगैरह ) । गोष्ठी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. सभा, २ संलाप (वार्तालाप) और ३. पोष्यवर्ग (सेवक वर्ग, नौकर समुदाय) | गोष्पद शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. गोखुरश्वभ्र (गोखुर प्रमाण सूराख जिसमें गाय के खुर पड़ने से जमीन गहरी हो जाती है) और २. गोसेवित स्थल (गोष्ठ, जहाँ गाय बैल जमा होकर रहते हैं— बैठते हैं) । गो शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. चन्दिर (चन्द्रमा) २. सूर्य, ३. किरण, ०. स्वर्ग और
1. वज्र ( कुलिश) ।
मूल :
क्रतुभेदे
बलीवर्दे
ऋषभाभिधभेषजे । स्त्री स्यात् लोचने भूमौ दिशि वाचि शरे जले ॥ ५०६ ॥
हिन्दी टीका - पुल्लिंग गो शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं - १. क्रतुभेद ( गो मेधयज्ञ) २. बलीवर्द ( सांड़) ३. ऋषभाभिध भेषजे (ऋषभ नाम का औषधि विशेष ) किन्तु स्त्रीलिंग गो शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. लोचन (नेत्र) २. भूमि, ३. दिशा, ४. वाक् (वाणी) ५. शर (बाण) और ६. जल (पानी) ।
मूल :
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जनन्यां सौरभेय्यां च न स्त्रियां लोमनीरयोः ।
गोतमो गणभृद्भेदे शतानन्दे महामुनौ ॥ ५०७ ।। गौरश्चैतन्य देवे स्यात् चन्दिरे श्वेत सर्षपे । धववृक्षे श्वेत पीतारुण वर्णेषु कीर्तितः ॥ ५०८ ॥
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